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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तक्का जत्थ न विज्जइ, मई जत्थ न गाहिया अर्थात् सभी स्वर जहां गौण हो जाते हैं, तर्क की जहाँ अवस्थिति नहीं रह जाती, जो शब्दों और युति के द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता, अनुभूति का विषय है कहकर अध्यात्म का रहस्य उद्घाटित किया कबीर ने . ___ “पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय' कहकर पंडित होने का रहस्य बताया। नरसी महेता ने कहा था कि ग्रन्थों ने सारी गड़बड़ कर दी है और खरी बात नहीं कही है. तुकाराम ने सद्भाव के ग्रन्थ लेखन की शक्ति और शैली से अपनत्व दिया है । दक्षिण की संत परंपरा सत्य की मशाल के प्रकाश में जीवन को देखने की अभ्यस्त है। पश्चिम की आंग्ल हो या यूनीनी, लातीनी हो फ्रांसीसी, कहीं से भी उगनेवाला सत्य का सूरज एक ही बात बताता है कि शब्द के मार से मुक्त हो जाओ, तो फिर जो उगंगे, फल वे ही अनुभूति के महासत्य को उद्घाटित करेंगे । अध्यात्म का अंचल में शब्द की साधना से नहीं, अक्षर की साधना से, पूजा से संलग्न और समृद्ध होने वाला है, फिर भी समझना तो उसे शब्द से ही है । जब यह प्रश्न उभरा कि किस का शब्द सत्य का उद्घाटन करता है - तो एक ही तथ्य प्रस्तुत किया गया - 'अप्पणा सच्च मे सेज्जा' पन्ना सम्मिक्खाए धम्मं 'जे एगं जाणइ ‘जो नाणेइ अप्पाणं परमसमाहि हव्वे तस्स” अभिप्राय यह है कि स्वयं से जुड़ने पर ही सत्यता का महाद्वार खुलता है । यह आधार ग्रहण करके ही हम इस स्तंभ के माध्यम से कुछ चर्चा करेंगे कितनी महत्त्वपूर्ण अभिव्यक्ति है - जे हि मन पवन न संचरइ, रवि शशि नांहि प्रवेश । त हि बढ चित विसाम करूं, सरहें कहिय उवेस ॥ अर्थात्, जिस मन में पवन तक की गति नहीं होती जहाँ सूरज और चांद का प्रवेश भी नहीं, उसी स्थिति से चलकर ऐ चित्त ! विश्राम कर । निजत्व की अनुभूति का प्रयास : अध्यात्म - 45 For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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