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इसका समाधान देते हुए कृष्ण ने कहा -
बहूनि मे व्यतीतानि, जन्मानि तव चार्जुनः ।
तान्यहं वेद सर्वाणि, ने त्वं वेत्थ परंतपः ॥ अर्थात्, हे अर्जुन ! मेरे और तेरे इस जन्म के पहले अनेको जन्म हो चुके है । तू इस बात को नहीं जानता है, परन्तु मैं इसे भलीभांति जानता हूँ। __पाश्चात्य विचारकों ने भी इस सिद्धान्त के सम्बन्ध में अभिव्यक्तियों की है, जो मननीय है । ग्रीक दार्शनिक पायथागोरस ने कहा साधुता का परिपालन करने पर जीव का जन्म उच्चतर लोकों में होता है और दुष्टकर्मों का आचरण करने पर जीवात्माएं तिर्यंच अर्थात् पशु आदि योनियों में जाती है। प्लेटो का प्रसिद्ध ग्रन्थ है फीडो ! फीडो ग्रन्थ में विस्तार से आत्मा की जीवन यात्रा का वर्णन विश्लेषण है, वे पुनर्जन्म के आत्मा के सिद्धान्त को स्पष्टतः सिद्ध मानते है । एम्पिडोक्स आदि यूनानी दार्शनिकों का अभिमत रहा कि यदि पूर्व जन्म है तो पुनर्जन्म भी है। पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म दोनों साथ-साथ व्यवस्थित रूप से चलते हैं । शैलिंग का पुनर्जन्म में अटूट विश्वास था । लायबनिज के अनुसार प्रत्येक जीवित वस्तु अमर एवं अविनाशी का है। विचारक कान्ट ने व्यक्त किया - इस संसार में प्रत्येक आत्मा मूलतः शाश्वत है। दार्शनिक स्पिनोझा के साहित्य के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि उसका, आत्मा की शाश्वता में अखूट-अटूट विश्वास था । न केवल पाश्चात्य दर्शन अपितु पाश्चात्य काव्य साहित्य में भी पुनर्जन्म एवं आत्म सिद्धान्त के सम्बन्ध मे स्फुट संकेत देखने को मिलते है । हाईडन, वर्ड्सवर्थ, मैथ्यु, आर्नोल्ड, ब्राउनिंग आदि ने यह एक स्वर में स्वीकार किया कि अजर-अमर अविनाशी शक्ति समृद्ध आत्मा का वध करने की क्षमता मृत्यु में नहीं है।
प्रस्तुत लेखन में, मैंने मात्र संकेत कर दिये हैं, विस्तृत विवेचन विश्लेषण संप्रति मेरा उद्देश्य नहीं है । मेरा सोचना है कि इस सिद्धान्त पर स्वतंत्र रूप से महत्त्वपूर्ण उपादेय ग्रन्थ तैयार हो सकता है, और इस दिशा में भी मेरा लेखन का संकल्प है, यथासमय वह भी मूर्त स्वरूप लेगा । उद्देश्य मात्र यही है कि आत्मतत्त्व की प्रतीति 40 - अध्यात्म के झरोखे से
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