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से रहित, धर्मसाधना का विरोधी एवं छलकपट प्रधान मानसिकता से युक्त होता है। कापोत लेश्या वाला दूसरों की निंदा में रूचि एक शल्य प्रधान आंतरिकता लेकर चलता है । इसी, तरह आगे जिस तेजो लेश्या का उल्लेख है इस लेश्यावाला जीव विनम्र अचपल, सरल मर्यादानिष्ठ, धर्म का आराधक, तत्त्वरुचि सम्पन्न, मूल्यनिष्ठ एवं परोपकार परायण होता है । पद्म लेश्या से जुड़ने पर जीव में काम, क्रोध, लोभ, अहंकार के निग्रह, इन्द्रियों के वश में करने की प्रवृत्ति एवं सरल-संयम के प्रति, इसके परिपालन के प्रति भावनाएं जागृत होती है । शुक्ल लेश्या वाला जीव अतिशुद्ध एवं अत्युत्कृष्ट परिमाणों वाला सरलसंयम, वीतरागसंयम, उपशम श्रेणी क्षपकश्रेणी, यथाख्यात चारित्र और शुक्ल-ध्यान में वर्तन करने वाला होता है । पहली तीन लेश्याएं भावनाएं अप्रशस्त्त एवं अशुभ तथा शेष तीन लेश्याएं प्रशस्त है।
इसे स्पष्ट करने के लिए एक प्रसिद्ध उदाहरण का सहारा लिया जा सकता है। कहा जाता है कि विभिन्न प्रकृत्तियोंवाले छ: भूखे व्यक्तियों ने एक बार जंगल में घूमते हुए जामुनों से लदा हुआ एक वृक्ष देखा तो उसमें से पहले कृष्ण लेश्या वाले व्यक्ति ने कहा - आइये, हम इस वृक्ष को काट दें और फिर आराम से बैठकर हम फल खाएंगे ।
नील लेश्या वाला दुसरा व्यक्ति बोला - नहीं भाई । केवल बड़ी-बड़ी डालियां काट लेते हैं । कापोत लेश्या वाले तीसरे व्यक्ति ने कहा- बड़ी-बड़ी डालियां क्यों काटी जाए, केवल गुच्छों वाली छोटी छोटी डालियां ही काटनी चाहिए । तेजो लेश्या वाले चौथे व्यक्ति ने सलाह दी - डालिया काटने से क्या लाभ होगा ? जबकि केवल गुच्छे ही तोड़ने से काम चल सकता है।
पद्म लेश्या वाले पांचवे व्यक्ति ने अपने विचार रखते हुए परामर्श प्रकट किया - गुच्छों में तो कच्चे फल भी हैं इन्हें तोड़ने से क्या लाभ होगा ? अतः केवल, पके हुए फल ही तोड़कर भूख मिटानी चाहिए।
तभी शुक्ल लेश्या वाले छठे व्यक्ति ने शान्ति भाव से सबको समझाया कि पृथ्वी पर गिरे हुए फल क्या कम है ? जब इन्हीं से भूख मिटाई जा सकती है तो बेचारे वृक्ष को क्यों काट दिया जाए ? इन छ: व्यक्तियों की विचार-धारा लेश्याओं का सुन्दर
आध्यात्मिक उत्क्रान्ति भावात्मक निर्मलता पर निर्भर - 33
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