________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
32
-
3
1
आध्यात्मिक उत्क्रान्ति भावात्मक निर्मलता पर निर्भर
www.kobatirth.org
आ
ध्यात्मिक विकास में जो सहायक साधन हैं, उनमें भावात्मक निर्मलता
का भी अपना महत्त्व है । भाव, विचार, परिणाम,
लेश्या
एक दूसरे के पर्यायवाची है । लेश्या,
शब्द भाव का ही द्योतक है। भाव शब्द प्रचलित
शब्द है, जबकि 'लेश्या शब्द आगमों का पारिभाषक शब्द है ।
-
अध्यात्म के झरोखे से
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जिससे आत्मा के साथ कर्मों का सम्बन्ध हो, उसे लेश्या कहते हैं । मन के, भीतर के अच्छे-बुरे विचार ही लेश्या है । कषाय और योग के मिश्रण से जो लेश्या होती है, उसकी स्थिति अन्त मुहूर्त मानी गई है और जहाँ तक योग की प्रवृत्ति है, वहाँ लेश्या देश उन करोड़ पूर्व निरंतर रह सकती है आदि वह शुक्ल लेश्या ही है जो सयोगी केवली गुण स्थान में पाई जाती है । जहाँ योग नहीं, वहाँ. लेश्या बिल्कुल नहीं होती । चौदहवें गुण स्थान में तथा सिद्धों में योग भी नहीं होते और लेश्याएं भी नहीं होती । लेश्याएं छः प्रकार की बताई गई है - कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या । कृष्ण लेश्या वाला अत्यन्त अशुभ विचारों में जीता है । महारंभ और महापरिग्रह इसी लेश्या का परिणाम है। नील लेश्या दूसरों की समृद्धि को देखकर मन ही मन उद्विग्न रहता है। वह खान-पान के विवेक
For Private And Personal Use Only