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उनके लेखन में जो पारदर्शिता दिखाई देती है, वह उनके स्वस्थ भाव की द्योतक है ।
अध्यात्म से संबंधित कई छोटे-बड़े ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ है, पर आचार्यदेव की प्रस्तुत कृति “अध्यात्म के झरोखे से" का अलग महत्त्व है । अत्यन्त सरल सहज एक सुबोध भाषा शैली में सामग्री का इस तरह से संयोजन किया गया है कि कृति हर एक के लिए उपयोगी बन सके । मेरी अपनी मान्यता है कि ऐसी रचनाओं का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार होना चाहिए, जिससे अधिकाधिक मुमुक्षु एवं भव्य जीव लाभान्वित हो सके ।
संपादन एवं अनुवाद की प्रस्तुत मूल ग्रंथ के भावों को यथावत् हिन्दी भाषा में रखने का भरचक प्रयास किया है । प्रस्तुत प्रकाशन में मेरे शिष्य मुनिश्री महापद्मसागरजी का भी योगदान प्रशंसनीय है ।
जिनाज्ञा के विरुद्ध कुछ लिखा गया हो तो मिच्छा मि दुक्कडम् |
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- देवेन्द्रसागर गणि
कृति और कृतिकार
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