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कृति और कृतिकार
जैन संस्कृति और साहित्य के दिग्गज रक्षक तथा कला क्षेत्र एवं अन्य विधाओं के मर्मज्ञ, शासनप्रभावक, क्रांतिकारी चिन्तक, कुशल प्रवचनकार आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज का व्यक्तित्व बहुआयामी है । वे जितने सहज हैं, उतने ही आदर्श और यथार्थ के समन्वय साधक हैं । वे स्वयं गुणी हैं, गुणज्ञ हैं और गुणानुरागी भी हैं।
प्रस्तुत कृति “अध्यात्म के झरोखे से' के प्रत्येक पृष्ठ पर पूज्य आचार्यश्री द्वारा लिखित उद्बोधक और अन्तःस्पर्शी आध्यात्मिक विकास में सहायक आलेखों का एक दिव्य प्रकाश झिलमिलाता सा मिलेगा, जिसकी सुहावनी स्वर्ण शक्ति जागृति का सन्देश सुनाती है । प्रगति का पंथ दिखाती है, स्व में स्व की जागृति, क्रान्ति का शंखनाद करती हुई मानव आत्मा को ऊर्जा एवं स्फूर्ति से भर देती है । विषय गंभीर, भाषा सुबोध, शैली रोचक और प्रवाहपूर्ण, यह विशेषता है "अध्यात्म के झरोखे से' के इन लघु किन्तु महत्त्वपूर्ण आलेखों की।
"अध्यात्म के झरोखे से' कृति के स्वाध्याय, चिंतन से पाठक वर्ग को चिन्तन-मनन की अच्छी, सामग्री प्राप्त होगी, मन की बुभुक्षा मिटेगी... ! __ अध्यात्म योगी महाप्राण आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज एक ऐसी अस्तित्व धारा है जो समय के गगन पर उगा नया सूर्य है । गगन भी नया और सूर्य भी नया । उनकी भाषा
और उनकी अभिव्यक्ति होठों से निःसृत नहीं होती, उसमें हृदय का अमृत घुला होता है।
कृति और कृतिकार - 13
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