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गणिश्री ने सत्साहित्य का संकलन संपादन कर अनेक पुस्तकों का सर्जन कर घर घर में स्वाध्याय का यज्ञ प्रज्वलित किया है, इसी शृंखला में एक और कड़ी इस प्रकाशन से जुड़ती है । पाठकों को गणिश्री का यह उपहार भी पूर्व की भाँति पसंद आयेगा । सरल, सुबोध भाषा-शैली में प्रस्तुत इस ग्रन्थ में मानव को अध्यात्म मार्ग पर कदम रखने की सोच समझ प्राप्त होगी। श्री अष्टमंगल फाउन्डेशन के अन्य प्रकाशनों की तरह इस "अध्यात्म के झरोखे से" पुस्तक द्वारा मुमुक्षु एवं वाचक जिन हित वचन ग्रहण कर परमानंद की प्राप्ति करेंगे यही मंगल कामना करते हैं।
इस ग्रंथ के प्रकाशन हेतु कोलकाता निवासी श्री भोगीलाल कान्तिलाल महेता की ओर से आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है । इस पुस्तक को ज्ञानभंडारों में भेट देने हेतु शेठ नवलचंद्र सुव्रतचंद्र देवस्थान पेढ़ी (पाली, मारवाड) के ज्ञान खाते से आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है । इसके लिए हम सभी के आभारी है। साथ ही इस पावन प्रसंग पर आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा (गांधीनगर) के सहनिर्देशक द्वय पं. श्री मनोजभाई र. जैन व डॉ. बालाजी गणोरकर को भी हम कैसे भूल सकते हैं।
- श्री अष्टमंगल फाउन्डेशन
12 - अध्यात्म के झरोखे से
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