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उसके धन को हथियाने के उद्देश्य से उस पर कड़ी नजर रख रहा है । वह यात्री सजग था। जब वह सो जाता तब सहयात्री उसके सारे सामान को टटोलता, पर उसे आश्चर्य होता कि उसके सारे सामान में कहीं भी वह धन नहीं मिलता। खबर पक्की थी, विश्वस्त स्रोत से प्राप्त हुई थी। चोर ठगों का भी एक दूसरे के सूचनाएं देने का पुखता इंतजाम रहता है । उसी आधार पर सूचना पाकर वे कार्यरत रहते हैं। पूरी यात्रा में हर तरीके सहयात्री ने अनेक बार टटोलकर धन की खोज की, परन्तु उसे वह नहीं मिला । अंततः लक्ष्य स्थान भी आ गया। यात्री को ले जाने के लिए उसका पुत्र भी आ गया। यात्री ने पुत्र को धन दिया और कहा- मैं जरा रास्ते में कुछ अन्य आवश्यक कार्य सम्पन्न कर आता हूँ, तुम चलो । पुत्र चला गया । सहयात्री आश्चर्य से देखने लगा ।
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सहयात्री से रहा नहीं गया । उसने यात्री का लोहा मानते हुए पूछा महाशय ! मैं अपने उद्देश्य को नहीं पा सका, परन्तु क्या आप बतलाएंगे कि आपने अपना धन कहाँ सुरक्षित रखा था ? मुस्कुराते हुए यात्री ने कहा- बंधु ! आपका सारा ध्यान मुझ पर केन्द्रित था और मुझमें मेरे सामान में ही अपने को टटोलते रहे अपने मन को स्थिर नहीं किया । अपने चिंतन पर जोर नहीं डाला, स्वयं को नहीं टटोला। अपनी मन की यात्रा भीतर की ओर नहीं चली। आप यदि अपना सामान टटोलते तो आप जो पाना चाहते थे, वह पा लेते । परन्तु आपने एक क्षण भी अपने को नहीं टटोला | आपके जरा से भी इधर उधर होने में मैं सोने से पूर्व अपनी रकम आपके सामान में रख देता था और फिर चैन की नींद सो जाता था ।
बन्धुओं ! इस प्रकार हम देखते है कि जो भी मन की भीतरी यात्रा से विमुख रहता है वह अपना मुख्य लक्ष्य नहीं पा सकता है। जो कुछ भी आप बाहर पाते है या देखते है उसके प्रति मन में भी मनन कीजिए। इस मनन के लिए मौन भी एक कारगर उपाय
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है । मौन से यह मेरा तात्पर्य है, मन का मौन । मन को स्थिर करने की युक्ति में जो
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सफल होते हैं उनका चिंतन भी ऊर्ध्वता पाता है । उस स्थिति में मन के संघर्ष पर
120 अध्यात्म के झरोखे से
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