________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
करता है, पशु के प्रति मनुष्य ज्यादा ही क्रूर है । पशुधन को नष्ट करने का हमारे यहाँ क्रम चला है । निर्यात के लिए पशु हिंसा खूब चली है। पशुधन को और देश नष्ट नहीं करते यह तथ्य है, तथ्य के बावजूद हम समझते नहीं है । अपने देश का आर्थिक आधार वे तोड़ना नहीं चाहते हैं । वहाँ का पर्यावरण इसीलिए संतुलित है। पशुओं से खाद, गोबर गैस उपलब्ध होता है । पशु की प्राकृतिक मृत्यु सहज है । मृत्यु के बाद चमड़ा सींग उपयोग में आता है । अहिंसा हमारा धर्म है । भारत में अहिंसा के उत्कृष्ट प्रयोग हुए हैं। आज यही हिंसा का ताण्डव मचा है। पशुओं की हिंसा मानव हिंसा में संकुचित हुई है | जैनत्व पर नित्य आघात हो रहा हैं | अहिंसा का अवशोषण भी यही हो रहा है । यही पर्यावरण चिन्ता का सबक है । हिंसा के विरोध में संघर्ष समितियाँ बनी है । पर अभी भी प्रयत्न अधूरे ही हैं । हिंसा का अनर्थक विरोध जैनों का दायित्व है | यह दायित्व इन दिनों ज्यादा बढ़ा है। जैनत्व का भी यही उद्घोष है । पशु हमारे धन है । पशुओं की रक्षा का सुगम मार्ग शाकाहार है । शाकाहार पर्यावरण का तु है । आहार का संस्कार हमारी उत्कृष्ट भावना है । जम्बूद्वीप पन्नति सूत्र में उल्लेख है - संवत्सरी के दिन मांसाहारी मानवों ने पृथ्वी पर उगे हुए फलों का सेवन कर भूख मिटाने का शुभ संकल्प किया था । उन्होने मांसाहार को त्याग दिया था और मांसाहारी के निकट भी न बैठने का व्रत लिया था । ऐसे मंगलकारी अहिंसा दिवस को सदासदा के लिए स्मरणीय बनाने हेतु भी इस पर्व की आराधना इन्हीं दिनों की जाती है ।
जैन आख्यानों में समृद्धि का प्रतीक पशुधन माना जाता रहा है । यह हकीकत है कि हल से की जानेवाली खेती सबसे अधिक वैज्ञानिक तथा सस्ती है । तेल पेरने की घानी और पानी के लिए रहट अतिरिक्त हिंसा से बचाता है। मशीनी उद्योगों से पृथ्वी पर विनाश बढ़ा है । धरती जल वायु का प्रदूषण इन्हींसे हुआ है । इसके विपरीत गोमूत्र कीट नाशक रोगाणु नाशक है । गोबर भी रोगाणु नाशक | परमाणु विकिरण रोकता है ।
114
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गति की दृष्टि से पर्यावरण पर आघात किये गये । पर इस गति ने ही बड़ी दुर्गति की है । यह गति भौतिक क्षेत्र की है । इसे आत्मा को शून्य कर पाया गया है ।
अध्यात्म के झरोखे से
-
For Private And Personal Use Only