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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ युगादिवन्दना भविक तारक ! बारक संसृते ! दुरित राशि निवारक ! सत्पते । सुमति दायक ! नायक ! भूपते !, कुरुदयामति दीनगुणोझिते ! ॥२॥ सकल दुःख मुज्झित सिद्धितः, प्रचुर कष्ट सहादनु तापतः । भव कदम्ब महोदधि पातत, रतरण तारण तारय मामितः ॥३॥ प्रथित विश्व जनीन!, जगद्धित, प्रणय देव ! नरासुर पूजित !। क्रम युगाम्बुज भावन योगतः प्रथम केवल भाजन मामितः ॥४॥ जगतशेष विभूति विभूषितं, हरजीपत्तह चैत्य विराजितम् । मुनियतीन्द्र कृत स्तुति तोषितं, विभुममुं नमताऽतुल मूर्जितम् ॥५॥ [ अनुष्टुप वृत्तम् ] तुभ्यं नमस्तीर्थ नाथ!, सनाथी कृत विष्टप ! __ कृपा रस सरिन्नाथ नाथ श्री नाभि नन्दन ॥१॥ मत्यादिभित्रिभिमा॑नैः सहोत्थै र्नाथ ! शोभसे । नन्दनाभिसद्यानैः, रिव मेरू महीधरः ॥२।। देवेदं भारतं वर्ष, दिबोऽप्यद्याति रिच्यते । . त्रैलोक्य मौलि रत्नेन, यदलं क्रियते त्वया ॥३॥ असौ त्वजन्मकल्याण, महोत्सव पवित्रितः । __ आ संसारं जगन्नाथ ! वन्यस्त्वभिव वासरः ॥४॥ नारकाणामपि सुखं, जज्ञे त्वज्जन्म पर्वणा । अर्हतामुदयः केषां, नस्यात्संताप हारकः ॥५॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008691
Book TitleYugadi Vandana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages149
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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