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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञान योग यह पुस्तक है, स्थापनाजी है, बाजे के शब्द अच्छे लगते हैं, यह जो वर्तमान ज्ञान है, वह अनुभव ज्ञान है। मैंने कल मिठाई खाई थी, कल मैंने व्याख्यान सुना था । आज का अनुभव किया हुअा कार्य जो कल या बाद में याद आता है उसे स्मरण ज्ञान कहते हैं । आपने खीर खाई हो तो कल याद रहेगा किंतु यदि आपने रोटी खाई हो तो खीर याद नहीं आयेगी। आप बम्बई जाकर वापस आ गये तब आपको बम्बई की याद आई, किंतु अहमदाबाद बीच में आता है उसकी याद नहीं आई। इसीलिये एक ही माता-पिता के दो पूत्रों में रोगी और निरोगी का भेद पूर्व के कर्म के कारण हुप्रा । इससे प्रात्मा का अस्तित्व भी सिद्ध होता है। संसार में यदि पापको प्रिय से प्रिय कुछ है तो वह आत्मा है । प्रापको प्रिय से प्रिय कौन है ? धन है, पुत्र है, शरीर है, इन्द्रियें हैं, प्राण हैं ? मनुष्य को धन सब से प्रिय है। धन के लिये घर छोड़कर परदेश जाता है । धन से भी प्रिय पुत्र है । पुत्र बीमार हो गया तो लाखों रुपये खर्च करके भी पुत्र को बचाप्रोगे। पुत्र से भी प्रिय शरीर है, शरीर पर जब दुःख आता है तो मनुष्य धन और पुत्र दोनों को छोड़ देता है । एक बुढ़िया थी, उसके एक लड़का था, दोनों घर में रहते थे। रात को सोते समय बुढ़िया नित्य भगवान् से प्रार्थना करती "हे भगवान् ! तुम मुझे उठा लेना पर मेरे पुत्र को बचाना, उसको सही सलामत रखना।" बुढ़िया को किसी ने कह दिया था कि यमराज पाड़े का रूप धारण कर किसी को ले जाने के लिये पाते हैं । एक दिन पड़ौसी का पाड़ा छुटकर बुढ़िया जहां सो रही थी वहाँ प्रागया और उसके बिछौने को मुह में डालकर खींचने लगा । बुढ़िया चमक गई, देखा साक्षात् यमराज पा गया है, बचने का कोई साधन नहीं है, बोली, "हे यमरोज ! आप भूल गये हैं, जिसको आप लेने पाये हैं, वह तो मेरा पुत्र है, मेरे पास ही उसकी खाट है, उसको ले जाओ।" बुढ़िया को पुत्र से भी अपना शरीर अधिक प्रिय है। __ शरीर से भी इन्द्रियें अधिक प्रिय है। कभी दुर्घटना में हाथ-पाँव टूट जाय तो आप क्या कहेंगे ? हाथ पाँव भले टूटे आँख नाक तो बच गये। इन्द्रियों से भी प्रिय प्राण है। आप गिर गये, आँख फूट गई, जीभ कुचल गई तो आप कहेंगे कोई बात नहीं प्रारण से भी प्रिय कौन है ? एक व्यक्ति को केंसर है, भयंकर वेदना है, कहता है अब तो मेरे प्रारण निकल जाय तो अच्छा है। प्राण तो आपको प्रिय है, उसे भी प्राप छोड़ देना चाहते For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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