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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ज्ञान योग www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ 19 € युवक- "नहीं, निश्चय तो नहीं किया है ।" संत - "तब फिर तुम मना क्यों कर रहे हो कि परलोक नास्तिक से नास्तिक की भी परलोक की शंका तो रहती ही कहता है कि ग्रात्मा नहीं है, परलोक नहीं है, किंतु मन में ही है कि मैंने दान नहीं दिया, दया का पालन नहीं किया, किया, अब मैं मर जाऊंगा और शायद परलोक हुआ तो मेरा क्या होगा ? तुम कहते हो परलोक नहीं है. पर निकल गया तो तुम्हारा क्या होगा ? अतः परलोक है और आत्मा भी है । प्रात्मा न हो तो कर्म भी न हो । कर्म न हो तो संसार की विचित्रता न हो । एक हो माता है उसके दो पुत्र हैं एक रोगी, एक निरोगी, एक ज्ञानी तो भेद को किसने किया ? 'नहि बीज प्रयोजनाभ्यां बिना कस्याचिदुत्पतिरस्ति ।' जिसका कोई कारण नहीं है और जिसका कोई फल नहीं हैं, ऐसी कोई वस्तु इस जगत में नहीं है । प्रत्येक कार्य के पीछे कारण श्रौर फल अवश्य होते हैं । कारण के बिना कोई कार्य होता नहीं । जैसा कारण होता है, वैसा ही कार्य होता है तब रोगी, निरोगी, ज्ञानी, मूर्ख का कारण क्या ? इस जन्म में तो कोई कारण दिखता नहीं, तब अन्य जन्म के कर्म ही इसके कारण हुए । किसी को शुभ या अशुभ कार्य को तो मानना ही पड़ेगा | आप आत्मा को भी नहीं मानते और कर्म को भी नहीं मानते तो नहीं चलेगा। बालक को जन्मते ही स्तनपान की इच्छा क्यों होती है ? उसे कौन सिखाता है ? पूर्व संस्कार के कारण होती है । जिस व्यक्ति को जो जो संस्कार दृढ़ हों, वे वे संस्कार शीघ्र उदय में आते हैं, इसीलिये बालक जन्मते ही स्तनपान करता हैं । For Private And Personal Use Only नहीं है ? है । नास्तिक भय तो रहता परोपकार नहीं एक ही पिता है, दूसरा मूर्ख । इस कोई भी व्यक्ति चाहे जो प्रवृत्ति करे, उसके दो कारण होते हैं: १. यह मेरा इष्ट साधन है २. यह मुझसे हो सकता हैं । जैसे भोजन करना मेरा इष्ट साधन हैं और यह मुझसे हो सकता है । इस प्रकार के ज्ञान से ही मनुष्य भोजन करता है । आप व्याख्यान में क्यों प्राते हैं ? इसलिये कि यह आपका इष्ट साउन है, इससे लाभ मिलता है और यह हो सकता है । ज्ञान भी दो प्रकार का है : (१) अनुभव ज्ञान ( २ ) स्मरण ज्ञान ।
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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