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ज्ञान योग
ने पूछा, "तुम्हारी इच्छा हो तो एक रात मैं यहां रह जाऊँ ?" हलवाई ने सोचा कि मेरे यहां तो २४ घंटे १८ पाप का सेवन करने वाले आते हैं, ऐसे महात्मा पुरुष के चरण हमारे यहाँ आने से मेरी दुकान पवित्र हो जायेगी । कहा, "आप सुख पूर्वक यहां रहिये ।" दुकान के सामने ही राजमहल था, राजा झरोखे में बैठा सब कुछ देख रहा था। दुकान में कहीं कोयले और वहीं राख पड़ी थी, एक तरफ भट्टी थी, बहुत गंदगी थी । राजा को चिंता ई कि संसार में ऐसे कितने लोग हैं, जिनके घर नहीं हैं, सोने बैठने की जगह नहीं है । सुबह संत को बुलाकर पूछूंगा। मुनि ने सारी रात आवश्यक क्रिया, ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय में पूरी कर दी । राजा का सिपाही आया और बोला, राजा साहेब आपको बुला रहे हैं । "संत ने सोचा राजा को मुझसे क्या काम हो सकता है ? फिर भी मेरे जाने से यदि किसी का भला होता हो तो जाने में क्या एतराज है ? आगे आगे संत और पीछे सिपाही चलने लगे । रास्ते में एक युवक मिल गया । “महाराज रूकिये। मुझे आपसे एक प्रश्न पूछना है । क्या आपने परलोक को देखा है ?"
जरा
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संत बोले, "मैंने परलोक नहीं देखा, पर श्रद्धा से मानता हूँ ।
युवक "यदि आपने परलोक नहीं देखा तो यह दुःख क्यों देखते हो ? मेरे जैसे बन जाओ ।"
संत "तुम मुझे पहले यह समझा दो कि सुख दुःख क्या है ?" युवक "यह तो मैं भी नहीं जानता, आप ही बता दें ।'
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संत "जिस व्यक्ति ने जिस वस्तु में आनन्द माना हो, उसको उसमें सुख मिलता है । किसी को मिठाई खाने, सिगरेट पीने, शराब पीने, भोग विलास करने में श्रानन्द श्राता है । किसी को देव, गुरु, धर्म की भक्ति में सामयिक, प्रतिक्रमण में प्रानन्द आता है । मुझे भी दोक्षा में प्रानन्द प्रता है, इसलिये मुझे सुख है । यह बात ठीक है या नहीं ? यदि ठीक है तो पहले यह स्वीकार करो कि त्याग में दुःख नहीं है ।"
युवक- "मुझे यह स्वीकार है ।"
संत- "तुमने मुझे कहा कि परलोक नहीं हैं, तो क्या तुमने ऐसा निश्चय कर लिया है ?"