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दर्शन योग
बिछाया गया, प्राधा बाकी था. तभी जमाली ने पूछा, "पूरा हो गया क्या? अभी आधा ही बिछा है फिर भी शिष्य कहता है "हां. हो गया।" अमुक नय से संथारा हो गया है । जमालो भगवान् के सभी सिद्धांतों को मानता था, पर इस सिद्धांत में तो वह अपने को ही सत्य समझता था।
' 'कडेमाणे कडे' निश्चय नय से होने वाले कार्य को भी हो गया है कहा जाता है कोई व्यक्ति बंबई जाने के लिये घर से रवाना हुआ, अभी तो वह स्टेशन पर टिकट ही खरीद रहा है, तभी उसके घर पर उससे मिलने कोई प्रा जाता है। पूछा, "कहाँ गये?'' तो उत्तर मिला, 'बंबई गये हैं।' वास्तव में तो वह व्यक्ति अभी इसो नगर के स्टेशन पर ही है, किंतु व्यवहार नय से 'बंबई गया है' कहा जाना है। जमाली का अचिकित्सकीय कदाग्रह था इसलिये उसने अपनी बात मरते दम तक भी नहीं छोड़ी।
__ जमाली की ही तरह भगवान् की पुत्री प्रियदर्शना भी दीक्षित हुई । उसने भी जमाली का कदाग्रह पकड़ा । श्रावक ने साध्वीजी को बहत समझाया, पर वह नहीं मानी। तब एक कुम्हार श्रावक ने साध्वी की साड़ी पर अंगारा रख दिया। साध्वी चिल्लाई, "मेरा कपड़ा जल गया।" श्रावक बोला, "कपड़ा कहाँ जल गया ? अभी तो उसका एक अंश जला है, जब पूरा जल जाय तब कहना ।" साध्वी मान गई, उसने प्रायश्चित्त लेकर कदाग्रह का त्याग किया, भगवान् वोर की प्राज्ञा को शिरोधार्य किया। उसका यह कदाग्रह चिकित्सकीय था ।
अविरति को जन्म देने वाला अज्ञान है और प्रज्ञान को जन्म देने वाला मिथ्यात्व है । संसार को नव पल्लवित रखने वाला यदि कोई है तो वह अविरति का कारण मिथ्यात्व है। जब तक मिथ्यात्व न हटे, तब तक अज्ञान न घटे । जब तक अज्ञान न घटे, तब तक अविरति-बाह्यरमण न हटे । पांच महाव्रतों का पालन, नव पूर्व तक का अभ्यास और जप, तप, व्रत, प्रत्याख्यान प्रादि बाह्य साधनों का सुन्दर रीति से पालन करते हुए भी मिथ्यात्व के योग से इन आत्माओं को द्रव्य-विरति (द्रव्य चारित्र वाले) ही कहा गया है- ___ 'अट्ठविह कम्म रुक्खा सब्वे ते मोहविज्ज मूलागा।'
आठ प्रकार के कर्मवृक्षों का मूल मिथ्यात्व मोहनीय ही है। मिथ्यात्व हट जाय तो प्रात्मा को मोक्ष होने में अधिक से अधिक पुद्गल परावर्तन से ज्यादा समय नहीं लगेगा।
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