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दर्शन योग
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भूल से पहिन लिया है तो थोड़ा चलने पर आपको ज्ञात हो जायगा कि यह जूता प्रापका नहीं है। किंतु मिथ्यात्व तो गाढ़ अन्धकार से व्याप्त है, अत: भाव-अंध मिथ्यात्वी अपनी आदत को नहीं छोड़ सकता।
यह अट्ठारवाँ मिथ्यात्व-शल्य अंतिम पाप स्थानक है। मिथ्यात्व उत्पन्न होने के दो कारण हैं:-१) अज्ञान और (२) दुराग्रह । योगशास्त्र में दुराग्रह को अभिनिवेष के नाम से जाना जाता है। अभिनिवेष के तीन अर्थ होते हैं: -- (१) क्रूरता-दुष्टता, (२) उतावलापन-जल्दबाजी और (३) प्राग्रह-दुराग्रह । यदि किसी व्यक्ति को चांदी का सही ज्ञान न हो तो वह चमकती सीप को भी चांदी मान लेता है। इसी प्रकार यदि जीव को सही वस्तु का ज्ञान न हो तो वह अमद् वस्तु को ही सद् वस्तु मान लेता है। इसी का नाम मिथ्यात्व है।
इंग्लैंड में एक ऐसा विचार पक्ष है जो अपने को Agnostic या निष्ज्ञानवादी कहते हैं। उनका कहना है कि प्रत्येक वस्तु को प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध करो तभी हम उसके अस्तित्व को स्वीकार करेंगे । ऐसे लोगों को हम ज्ञान जिज्ञासु कह सकते हैं, परन्तु कई ऐसे दुराग्रही मनुष्य भी होते हैं, जो पकड़ी हुई बात को कभी नहीं छोड़ते । जैसे: --
तातस्यकूपोऽयं इति वाणा: क्षार जल कापुरुषा:पिबन्ति ।'
"यह मेरे बाप का कुना है, मैं तो इसो का पानी पीऊंगा।' ऐमा कहकर जो लोग मीठा जल मिलने पर भी, बाप के कूए का खारा जल पाते हैं, वे मूर्ख हैं. कायर हैं. उनमें विवेकशक्ति नहीं है। शरीर में जब तक बुखार का असर होता है, तब तक जीभ में कडुवापन रहता है, अाँख या सिर में स्थिरता नहीं होती। ठीक यही स्थिति मिथ्यात्वी की होती है, क्योंकि मिथ्यात्व को बुखार की उपमा दी गई है । जिसके असर से देव, गुरु, धर्म पर श्रद्धा नहीं रहती । कदाग्रह अपरिवर्तनीय होता है। वह दा प्रकार हैं:- १. चिकित्सकीय और २. अचिकित्सकीय । जा कदाग्रह जीवन भर न छूटे उसे अचिकित्सकीय कहते हैं ।
जमाली ने भगवान के पास दीक्षा ली, किन्तु मात्र एक बात को लेकर भगवान से इतने दूर हो गये, फिर भी अपनी बात नहीं छोड़ी। कदाग्रह अहकार का पाषण करता है, वह जीव को नम्र नहीं बनने देता । जमाली बीमार पड़ा, शिष्य को संथारा करने को कहा । संथारा प्राधा
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