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दर्शन योग
मूल के वृक्ष नहीं हो सकता, वैसे ही बिना सम्यक्त्व के ज्ञान नहीं हो सकता । सम्यक्त्व किसे कहा जाय इसको जानने के लिये पहले इसके विरोधी मिथ्यात्व को पहिचानना आवश्यक है । 'यहां प्रमुक व्यक्ति नहीं है' इस कथा को समझने के लिये पहले यह जानना जरूरी होगा कि 'अमुक व्यक्ति कौन था ? उसका परिचय क्या था ?' इसी प्रकार मिथ्यात्व को पहले समझना चाहिये, क्योंकि किसी भी वस्तु की यदि दोनों बाजूओं को बराबर नहीं समझेंगे तो परिणाम उल्टा श्रायेगा ।
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एक सेठ की बूढ़ी माँ थी, एक बार वह बीमार पड़ गई, उसके मुँह से बार-बार थूक निकलता, जिससे मक्खियें उसके मुँह पर भिनभिनाती । सेठ ने मक्खियें उड़ाने के लिये एक नौकर रखा और उसे कहा कि "माँजी के शरीर पर मक्खी न बैठे, इसकी सावधानी रखना ।" नौकर मक्खियें उड़ाते उड़ाते थक गया तो हाथ में एक लाठी लेकर मक्खियों को धमकाने लगा, "देखो, इस बार तो उड़ा देता हूं, पर अगली बार आई तो तुम्हें जिन्दा नहीं छोडूंगा ।" मक्खियें कहाँ मानने वाली थी, वे तो आई और माँजी के मुँह पर बैठ गई । नौकर ने आव देखा न ताव, मक्खियों को मारने के लिये हाथ की लाठी माँजी के सिर पर मार दी। मक्खियें तो एक भी न मरी, सब उड़ गई, किंतु मांजी के प्रारण पखेरू उड़ गये क्योंकि लाठा की चोट से माँजी का सिर फट गया। सेठ ने मक्खियों के त्रास से माँजी को बचाने को कहा था, पर नौकर सेठ की बात को और मक्खियों के स्वभाव को न समझने के कारण, परिणाम उल्टा प्राया ।
अब आप सम्यक्त्व स्वरूप सुन लें, पर उसका चितन मनन करने और उसे जीवन में उतारने के समय यदि आप भी मक्खी उड़ाने वाले नौकर जैसे बन गये तो लेने के देने पड़ जायेंगे, अतः पहले उसके विरोधी मिथ्यात्व को भी समझ लेना चाहिये, जिससे कि सम्यक्त्व का सही स्वरूप आपके सामने या सके। इसीलिये योगशास्त्र में भी मिथ्यात्व की बात कही गई है ।
जो व्यक्ति आँख से देखकर नहीं चलता, वह ठोकर खा सकता है, नीचे गिर सकता है । कौनसी वस्तु किस की है इसका पूरा ध्यान न होने से भूल से वस्तु बदल भी सकती है, जैसे कई बार व्याख्यान स्थल या मन्दिर में चप्पल जूते या छाते बदल जाते हैं । किंतु समझ आने के बाद या वस्तु का स्पर्श हो जाने के बाद दुबारा भूल नहीं कर सकता, जैसे प्रापने गलत जूता
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