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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दर्शन योग आपने सुना होगा कि मनुष्य हिमालय पर्वत की सर्वोच्च चोटो एवरेस्ट पर चढ़ गया। पर्वत पर चढ़ना जैसे अत्यंत कठिन है वैसे ही गुणस्थानक पर चढ़ना भी अत्यंत कठिन कार्य है। साहसिक और धैर्यवान प्रात्मा ही गुणस्थानक पर चढ़ सकती है । गुरगस्थानक न तो कोई पर्वत ही है, न कोई भौगोलिक वस्तु ही, परन्तु यह प्रात्मा से संबंधित वस्तु है। व्यापार का जैसे अर्थशास्त्र के साथ प्रगाढ संबंध है, आयुर्वेद का जैसे औषधि के साथ अभिन्न संबंध है, उसी प्रकार गुणस्थानक का कर्म के विषय के साथ प्रगाढ संबंध है । जैसे पाप के स्थान को पापस्थान या पापस्थानक कहते हैं, वैसे ही गुण के स्थान को गुणस्थान या गुणस्थानक कहते हैं। प्राकृत या अर्धमागधी भाषा में 'गुरगठाण' शब्द है। अपभ्रश भाषा में 'गुराग ठा-' कहते हैं। गुरगठाणु, गुणस्थान या गुणस्थानक पर्यायवाची शब्द हैं । प्रात्मा के गुण ज्ञान, दर्शन, चारित्र उनका स्थान अर्थात् अवस्था । जिसमें आत्मा के गुणों की विविध अवस्था या भिन्न भिन्न भूमिका दिखाई गई हो, उसे गुणस्थानक कहते हैं। तात्त्विक दृष्टि से देखा जाय तो प्रात्मा के विकास का असंख्य अवस्थायें होती हैं, तब गुरणस्थान भी असंख्य होने चाहिये, किंतु इस प्रकार प्रात्मा के विकास को समझना कठिन हो जायगा । इसीलिये शास्त्रकारों ने इनका वर्गीकरण करके १४ विभाग किये हैं । इनको चौदह गुरणस्थानक कहते हैं। ७ वाँ, ८ वां या १० वां गुरणस्थानक तो आपने सुना होगा, किंतु २० वां, २५ वां या ३० वां गुणस्थानक अापने कभी सुना है ? जैसे बार सात होते हैं, पाठवां वार नहीं होता. तिथि १५ होती है १६ वी तिथि नहीं होती, बैंसे ही रणस्थानक कभी १४ ही होते हैं । वे १४ गुगास्थान कौन कौन से हैं ? शास्त्र में कहा है "मिच्छे सासण मीसे अविरय देसे पमत्त अपमत्ते । ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ निअट्टि अनिअट्टि सुहूमुवसम खीणे जोगि अजोगि गुणाः ।।' (१) मिच्छे = मिथ्यात्व गुणस्थानक, (२) सासरण = सास्वादन सम्यग् दृष्टि गुणस्थानक, (३) मिसे = मिश्र सम्यग् मिथ्या दृष्टि गुणस्थानक, (४) अविरय = अविरति सम्यग् दृष्टि गुणस्थानक, (५) देसे = देस विरति गुणस्थानक, (६) पमत्त = प्रमत्त सयत गुगास्थान For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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