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दशन योग
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निविध्न अजरामर स्थान की प्राप्ति करता है. अतः आप सभी सम्यग्दर्शन नामक अमृत जल का पान करें।"
गणित को जानने वाले जानते होंगे कि अंक रहित शून्य का कोई महत्व नहीं है, जबकि अंक के साथ लगे एक शून्य का दस गुणा महत्व बढ़ जाता है । मात्र सात शून्य हो तो उसका कुछ भी मूल्य नहीं है, पर एक के अंक के सामने सात शून्य लगे हों तो एक करोड़ का मूल्य हो जाता है । यही बात आध्यात्मिक क्षेत्र में भी है। शून्य के स्थान पर ज्ञान और चारित्र है और अंक के स्थान पर सम्यग्दर्शन है ।
प्रश्न उठता है कि कौन-सा जीव अजरामर स्थान की प्राप्ति करता है ? उत्तर में शास्त्र कहता है:
'सद्दमाणो जीवो वच्चइ अयरामर ढाणं ।' श्रद्धायुक्त जीव अजरामर स्थान को प्राप्त करता है।
फिर प्रश्न उठता है कि जब मोक्ष-प्राप्ति में अनन्तरण कारण चारित्र को माना गया है, तब सम्यक् दर्शन-श्रद्धा वाला जीव मोक्ष कैसे प्राप्त करता है ? उत्तर यह है कि चारित्र के मूल में ज्ञान रहा हुया है और ज्ञान के मूल में श्रद्धा रही हुई है। वास्तव में श्रद्धा वाला ही मोक्ष जाता है ।
जैसे धन की प्राप्ति से धनवान और विद्या की प्राप्ति से विद्वान् बन जाता है, वैसे ही श्रद्धा की प्राप्ति से श्रद्धावान् बन जाता है। यदि दर्शन शब्द का शाब्दिक अर्थ लें तो इसका अर्थ है देखना। किंतु देखने देखने में भी भेद होता है । एक व्यक्ति अपने दृष्टिकोण से देखता है तो दूसरा किसी दूसरे ही दृष्टिकोण से देखता है।
वैद्य ने रोगी से कहा कि अधिक भोजन नहीं करना चाहिये, यह स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। रोगी हट्टा-कट्टा था, बोला, "तो क्या भूखे मरना चाहिये ? भोजन नहीं करना चाहिये ?" वैद्य ने समझाया, "प्राप मंदाग्नि के मरीज हैं, इसीलिये अधिक भोजन न करने को कहा है, पाप तो नाहक नाराज होते हैं।" बताइये रोगी नाराज क्यों हुप्रा ? वैद्य के दृष्टिकोण को ठीक न समझने के कारण । परन्तु वैद्य के दृष्टिकोण को समझने के बाद वह शांत हो गया ।
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