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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दर्शन योग को विश्वास हुआ । ज्योतिषी के प्राग्रह पर राजा ने उस कील को फिर से उसी स्थान पर गडवाई, किंतु इस बार कील मजबूत नहीं लगी। ज्योतिषी ने कहा कील ढोल लगी है, यहाँ किसी का राज्य स्थिर नहीं रहेगा । सब से इन्द्रप्रस्थ का नाम ढीली ही पड़ गया जो अपभ्रश में उच्चारण भेद से दिल्ली हो गया और वहाँ किसी का राज्य स्थिर नहीं रहा । अनेक राजा महाराजा, बादशाहों, अंग्रेजों मुगलों, कांग्रेस और जनता का राज्य दिल्ली पर रहा और आज तक शासन बदलता ही रहा है । एक प्राचार्य अपने शिष्यों को अनुयोग तप करवा रहे थे, बीच में ही स्वर्गवासी हो गये। प्राचार्य की प्रात्मा ने मूल शरीर में प्रविष्ट होकर योगोद्वहन को पूरा करवाया फिर प्रकट होकर सब बात बता दी। किंतु शिष्यों के मन में शंका पैदा हो गई और उन्होंने परस्पर वन्दन भी छोड़ दिया। राजा को जब यह बात मालूम हुई तो शिष्यों को ठिकाने लाने के लिये एक उपाय ढूढा । उसने शिष्यों से कहा, "आप साधु नहीं लगते, मुझे तो साधु के वेष में चोर लग रहे हैं, बताइये आप साधु हैं या चोर ?" शिष्यों ने अपने बचाव के लिये प्राचार्यकृत योगोद्वहन को स्वीकार किया और पुन: स्थिर हो गये । राष्ट्रगीत वन्देमातरम् के रचयिता बकिमचंद्र चटर्जी उस समय के क्रांतिकारी पुरुष थे। उन्होंने सन् १८८२ में प्रानन्दमठ नामक क्रांतिकारी पुस्तक लिखी थी जिसने अंग्रेजी शासन में खलबली मचा दी थी। वे सारी जिन्दगी अंग्रेजों से लड़ते रहे । वे सत्य के उपासक थे। उन्होंने २७ ग्रन्थ लिखे जिनमें कृष्ण चरित्र श्रद्धा और भक्ति से पूर्ण था । मरने से ३-४ वर्ष पूर्व खूब बीमार पड़े, दाँत में से खून बहने लगा, एक समय में एक पाव खून बह जाता । डाक्टर ने कहा बोलना, स्वाध्याय, गीतापाठ बन्द कर देना चाहिये । किंतु उनकी गीता के प्रति इतनी श्रद्धा थी कि उन्होंने स्वाध्याय और गीता पाठ चालू रखा, फिर भी रोग समूल नष्ट हो गया और वे भले चंगे हो गये । __ योग तीन हैं:- १. ज्ञान योग २. दर्शन योग और ३. चरित्र योग । अाज दर्शन योग पर विवेचन चल रहा है । सम्यग्दर्शन की महिमा अपूर्व है, इसकी शक्ति प्रचित्य है । चौदह पूर्वधर भद्रबाहु स्वामी ने "उवसग्गहरं पार्श्व जिन स्तवन" में कहा है कि "हे भगवन् ! चिंतामणि रत्न और कल्पवृक्ष से भी अधिक आपके सम्यग्दर्शन रत्न की प्राप्ति से जीवात्मा For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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