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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दर्शन योग बतादे धन कहाँ है ?" सेठ बोला, "रात को मैं अपना धन तुम्हारे सामान में रख देता हूं और सुबह वापस ले लेता हूं। मैं जानता हूं कि ठग दूसरों का सामान संभालता है, अपना नहीं।' इसी प्रकार मिथ्यादर्शी पूदगलों में सुख को खोजता है, पर उसे सुख नहीं मिल पाता, वह विफल हो जाता है। किंतु सम्यग्दर्शी सेठ के समान अपनी पूजी को सुरक्षित रखता है, वह पुद्गलों में सुख को न खोज कर अपनी आत्मा में सुख को खोजता है। आस्मिकसुख को कोई ठग चुरा नहीं सकता है। इसलिये सेठ सफल होता है । 'रुचिनिनोक्त तत्त्वेषु सम्यक श्रद्धानमुच्यते । जायते तन्निसर्गेण गुरोरधिगमेण वा ।।' जिनेश्वर भगवान् द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त में रुचि ही सम्यक दर्शन है, इसी को सम्यक् श्रद्धा भी कहते हैं । यह स्वभाव से तथा गुरु के उपदेश से होती है । कई बार आपको भगवान् द्वारा कथित तत्त्वों पर श्रद्धा नहीं होती। भगवान् ने कहा पृथ्वी गोल नहीं है, यह सुनकर हमारे युवक बोल उठते हैं कि विज्ञान ने तो सिद्ध कर दिया है कि पृथ्वी गोल है । हम भगवान् की बात को कैसे सत्य मान लें भगवान् ने कहा कि चन्द्रमा पर देवता रहते हैं, किंतु युवकों को इस बात पर भी विश्वास नहीं होता क्योंकि मानव चन्द्रमा पर पहुंच चुका है और उसने वहाँ किसी प्राणी को नहीं पाया । भगवान् ने कहा कि व्यक्ति दुर्लभ मानव-जीवन लेकर इस संसार में प्राता है । विश्व में मानव बहुत कम हैं और आप कहते हैं कि मानव बढ़ते ही जा रहे हैं। भगवान् की वाणी पर भी श्रद्धा नहीं होती । क्या सचमुच मानव बढ़ रहे हैं ? नामधारी मनुष्य तो अवश्य बढ़ रहे हैं. पर वास्तविक मानव तो कहीं बढ़ नहीं रहे हैं । श्रद्धारहित ज्ञान निरर्थक है । १४ राजलोक में रहने वाले जीवों के दो विभाग करने में आये हैं-भव्य और अभव्य । इन दोनों में भव्य जीव ही सम्यग्दर्शन के अधिकारी हैं __ चूल्हे पर तपेली में पानी डालकर मूग उबालने को रखे हैं। प्रायः सभी मूग पक जाते हैं, पर कुछ मूग ऐगे होते हैं जो नहीं पकते, उन्हें For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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