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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६० 1 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दर्शन योग जन्म के बाद मृत्यु का आना तो निश्चित ही है । मोक्ष प्राप्त करके ही हम जन्म-मरण के चक्कर से बच सकते हैं । इसीलिये सम्यग्दर्शी जन्म से डरता है । शास्त्र कहा है : 'दसरण मुक्को य होइ चल सक्कओो ।' दर्शन रहित जीवन, प्रारण रहित मुर्दा जीवन है । सम्यग्दर्शन प्राध्यात्मिक साधना का प्रारण है। जैसे जीवरहित शरीर शिव नहीं शव कहलाता है, वैसे ही सम्यग्दर्शन रहित साधना भी निष्प्राण है । एक बार हनुमानजी ने विभीषण से पूछा "जब सीता का अपहरण करके रावरण उसे लंका में ले आया तब उस विषम वातावरण में भी प्राप लंका में कैसे रहे ?" विभीषण ने कहा "हे हनुमान ! जिस प्रकार बत्तीस दाँतों के बीच अकेली जीभ रहती है, उसी प्रकार मैं भी रावण की लंका में राक्षसों के बीच अकेला रामभक्त सतर्कता पूर्वक रहा ।" जैसे सोने को हजारों वर्षों तक जल में रखने पर भी उस पर जंग नहीं चढता वैसे ही सम्यग्दर्शी भो संसार में रहते हुए भी दाँतों के बीच जीभ और पानी में पड़े स्वर्ण के समान सतर्क रहते हैं। मिथ्यादर्शन ग्रात्मा का विकारी भाव है तो सम्यग्दर्शन आत्मा का श्रविकारी भाव है । मिथ्यादर्शन विष तुल्य तो सम्यग्दर्शन प्रमृततुल्य है । जिस प्रकार वैद्य विष खाकर भी नहीं मरता, उसी प्रकार सम्यग्दर्शी ग्रात्मा कर्मोदय से सुख दुःख का अनुभव करते हुए भी उसमें आसक्त नहीं होता । For Private And Personal Use Only एक सेठ विदेश से धन लेकर अपने नगर में आरहा था । मार्ग में एक ठग मिल गया । ठग बोला, "सेठजी सावधान रहना, जंगल का मामला है ।" सेठ ने धन दिखा कर कहा कि "इतना धन मेरे पास है । रक्षक तो पुण्य है । "धन देखकर ठग के मुँह में पानी आगया । दोनों एक ही धर्मशाला में ठहरे । ठग सेठ को नींद आने की प्रतीक्षा कर रहा था । जैसे ही सेठ को नींद आई, ठग ने सेठ का सारा सामान और शरीर संभाल लिया, पर उसे धन नहीं मिला । तीन दिन तक लगातार ठग रात को इसी प्रकार सेठ को संभालता रहा, पर धन न मिलना था सो नहीं मिला । आखिर ठग ने हार मान ली और सेठ से पूछा, "मैं हार गया सेठ, अब तो
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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