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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra काय योग ( हठ योग ) www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ५१ स्वरोदय ज्ञान सूर्य निम्न प्रकार के माने गये हैं । यहाँ सूर्य को सूर्यनाड़ी के अर्थ में लिया गया है- १. विद्याकटस्थ सूर्य २. स्नानसूर्य ३. भोजनसूर्य ४ लेखनसूर्य ५. निद्रासूर्य ६. कामसूर्य ७. वस्तुसूर्य । पानी पीना, स्थंडिल जाना, पद्मासन लगाना चंद्रनाड़ी में श्रेष्ठ. माना जाता है। नींद उड़ने पर यह देखना चाहिये कि कौन से तत्त्व से निद्रा का विच्छेद हुआ है । यदि जल और पृथ्वी तत्त्व से निद्रा वह शुभ है । यदि आकाश या अग्नि तत्त्व से निद्रा टूटी दुःखदायी है । टूटी है तो है तो वह प्रत्येक माह के शुक्न पक्ष की प्रथम तिथि से ३ दिन तक प्रातःकाल सूर्योदय के समय यदि चन्द्रनाड़ी वायु तत्त्व है तो वह शुभ है । कृष्ण पक्ष की तिथि से ३ दिन तक प्रातःकाल सूर्योदय के समय सूर्यनाड़ी में वायु तत्त्व है तो वह शुभ है । यदि वायु तत्त्व में चंद्रनाड़ी बहे और सूर्योदय हो तो वह शुभ है यदि वायु तत्त्व में चंद्रनाड़ी बहे और सूर्यास्त हो वह शुभ है । पांच तत्त्वों को पहचान पवन पृथ्वी से ऊपर की तरफ उठ रही हो तब अग्नि तत्त्व, पवन ऊपर से पृथ्वी की तरफ नीचे उतर रही हो तब जल तत्त्व, यदि पवन तिर्द्धा बहे तो वायु तत्त्व, दोनों तरफ बहे तो पृथ्वी तत्त्व और पवन सभी दिशाओं में फैल जाय तो आकाश तत्त्व माना जाता है । For Private And Personal Use Only सूर्यनाड़ी हो या चंद्रनाड़ी हो, उसमें वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी और आकाश में सभी तत्त्व क्रमशः निरन्तर बहते रहते हैं । तत्त्वों के परिवर्तन का समय इस प्रकार माना गया है- पृथ्वी ५० पल, जल ४० पल, श्रग्नि ३० पल, वायु २० पल और आकाश १० पल । पृथ्वी और जल तत्त्व में शांति कार्य करें तो सफलता प्राप्त होती है । श्रग्नि, वायु और ग्राकाश तत्त्व की तीव्रता में कार्य श्रेष्ठ है । आयुष्य जय, लाभ, वर्षा, धान्य उत्पत्ति, पुत्र प्राप्ति, युद्ध, गमन, आगमन आदि का प्रश्न करते समय यदि पृथ्वी और जल तत्त्व हो तो श्रेयष्कर और वायु
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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