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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० ] काय योग (हठ योग) बैठने से नहीं, अभ्यास द्वारा सिद्धि प्राप्त की जा सकती है । यद्यपि पक्षियों में जन्म से ही उड़ने की शक्ति होती है, फिर भी उन्हें अभ्यास करना पड़ता है। च्यवनप्राश लोहगुग्गल, रसायनचर्ण आदि प्रौषधि खाने से शरीर को शक्ति प्राप्त होती है। मंत्र से प्राकाश गमन अणिमा प्रादि की सिद्धि की प्राप्ति होती है । तप से संकल्प सिद्धि प्राप्त होती है । समाधि से ध्यान धारणा, ध्येय की सिद्धि प्राप्त होती है । उपासना से सत्य की प्राप्ति होती है । प्रार्थना से चित्त एकाग्र होता है । इसी प्रकार स्वरोदय के ज्ञान से मनुष्य के विचारों का तथा संस्कार का ज्ञान होता है । स्वरोदय जो वास्तव में योग का विषय होते हुए भी पूर्ण अभ्यास के बिना नहीं समझा जा सकता है। प्राकृत द्वाश्रय महाकाव्य के अन्त में श्रुतदेवी ने कुमारपाल को उपदेश देते हुए हठयोग प्रणाली का उपदेश दिया है। हठ को बोलचाल की भाषा में जिद्द या आग्रह कहा जाता है। परन्तु योग में हठ का अर्थ संकेत से लिया जाता है। सिद्ध सिद्धांत पद्धति में गोरखनाथ ने कहा है कि 'हकार : कीर्तितः सूर्यष्ठकारश्चन्द्र उच्यते। सूर्यचन्द्र प्रसोर्योगात् हठयोगी निगद्यते ।।' आप कहेंगे सूर्य और चन्द्र भी कभी इकट्ठे होते होंगे ? यहां सूर्य का अर्थ सूर्यनाडी से हैं अर्थात् दाँया स्वर और चन्द्र का अर्थ चन्द्रनाड़ी ,से अर्यात् बाँया स्वर । ह से दाँया स्वर और ठ से बाँया स्वर इन दोनों नाड़ियों के स्वर के मिलाप को हटयोग कहा जाता है। हठयोग का मूल प्रचार मांकडेय ऋषि से हुअा था, परम्परा विच्छेद होने से नौवीं शताब्दी में मत्स्येन्द्रनाथ तथा गोरखनाथ ने फिर से इस प्रणाली का विकास किया । नाथ संप्रदाय वाले इस योग को अधिक महत्व देते हैं। हठयोगी कहते हैं कि शरीर की शुद्धि से प्राण का, प्राण से मन का और मन से चित्तवृत्ति का नियन्त्रण होता है । धौति, बस्ति, नेति, त्राटक, नौलि, कपाली, भीति इस प्रकार षट्कर्म की योजना करते है । हठयोगी ८४ पासन मानते हैं। वर्तमान में १०० प्रासन तक हो गये हैं. इनमें से ३० प्रासन ही महत्त्व के हैं। इन आसनों से अनेक प्रकार के रोगों का शमन होता हैं और चर्बी बढ़ना बंद हो जाता है। For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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