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(ग्रहत) अरिहंत पद
अग्नि और आकाश तत्त्व हो तो अशुभ माना जाता है। अर्थ सिद्धि के स्थिर कार्य में पृथ्वी और शीघ्र कार्य में जल तत्त्व श्रेयष्कर है ।
पांच रंग के तत्त्व शास्त्र में कहा गया है कि शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम् अर्थात् धर्म साधना करने के लिये शरीर ही साध्य है, अतः शरीर को स्वस्थ रखना आवश्यक है। फिर कहा गया है कि 'परोपकारार्थमिदं शरीर अर्थात् यह शरीर परोपकार के लिये है। किन्तु शरीर से परोपकार के कार्य तभी होंगे जब शरीर स्वस्थ होगा ।
प्राचीन चिकित्सा विज्ञान के अनुसार रोगों के तीन मुख्य कारण बताये गये हैं वात पित्त और कफ । वायुजन्य रोगों का शमन अग्नि तत्त्व से होता है। अग्नि तत्त्व का रंग लाल है । अत: वायु रोग के शमन के लिये लाल रंग का ध्यान करना चाहिये। पित्त कोप या पित्त क्षय से होने वाले रोगों का शमन पृथ्वी तत्त्व से होता है। पृथ्वी तत्त्व का रंग पीला है अत: पित्त रोगों के शमन के लिये पीले रंग का ध्यान करना चाहिये। कफ दोष की शांति जल तत्त्व से होती है जिसका रंग सफेद है। यदि किसी को वात पित्त की बीमारी है तो हरे या नीले रग के ध्यान से ठीक हो सकती है। यदि वात, पित्त, कफ त्रिदोष की बीमारी हैं तो आकाश तत्त्व लाल रंग के ध्यान से ठीक हो सकती है ।
रंगों से मनुष्य के स्वभाव की पहचान भी होती है । हम नैतिक हैं या अनैतिक, उत्तेजित हैं या अनुत्तं जित, उदार स्वभाव के है या स्वार्थी, इनका पता किस रंग का और किस व्यक्ति का अधिक लगाव है, इससे पता लग
मूल रंग ! चार हैं-लाल, हरा, नीला, पीला, चार ही इनके सहायक रंग हैं जामुनी, काला, कत्थई और सलेटी । प्रत्येक रग हमारे शारीरिक स्वास्थ्य और मनोभावों को प्रभावित करता है।
लाल रंग का प्रभाव अत्यंत चमकते हुए लाल रंग के समक्ष पागल मनुष्य को रखने से पागल अधिक उन्मत्त बनते हैं, वश में नहीं रहते । पागल व्यक्ति को मात्र माघे घटे के लिये लाल रंग से पुते कमरे में बंद कर दीजिये, वह तूफान
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