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(महत) अरिहंत पद
देव भगवान की प्रतिमा को देखकर हर्ष विभोर होकर नाचने लगा। स्नान से पवित्र हो मिट्टी के मंदिर में भगवान को विराजित किया, पुष्पहार बनाकर चढ़ाया, अाँखों में आँसू लाकर बोलने लगा, "भगवान् ! आप मुझे मिले, अब बिना आपके दर्शन पूजन के अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा। एक बार सात दिन तक भयंकर वर्षा हुई, जिससे दर्शन पूजन न कर सका। उसने लगातार सात दिन तक उपवास किये। चक्रेश्वरी माता प्रसन्न हुई। बोली, माँग, क्या चाहिये ?" देवपाल बोला, "कुछ नहीं माता ! प्रभु भक्ति देवो।"
चक्रेश्वरी ने वर दिया, तू अाज से सातवें दिन यहाँ का राजा होगा । "उस नगर के राजा ने एक ज्ञानी से पूछा मेरा प्रायुष्य कितना है ?" ज्ञानी ने कहा, तीन दिन का।" तीन दिन बाद राजा मृत्यु को प्राप्त हुआ। पँच दिव्य प्रकट हुए । देवपाल पर कलश चढ़ाये गये। उसे राजदरबार में लाये । मंत्रियों ने उसकी आज्ञा मानने से इन्कार कर दिया देवी ने कहा, "मिट्टी के हाथी पर बैठ कर नगर में घूमो।" जब मंत्रियों ने देवपाल को मिट्टी के हाथी पर घूमते देखा तो समझ गये कि यह तो कोई सिद्ध पुरुष है। सब उसकी शरण में प्रा गये। जिसकी गायें चरात था, उस सेठ को देवपाल ने महाग्रामात्य बनाया और उसे राज्य संभला दिया तथा स्वयं परमात्मा की भक्ति करने लगा।
द्रव्य अरिहंतः तीर्थ कर पद भोगकर जो मोथा में गये हैं और तीर्थ कर नामकर्म के बंध से जो तीर्थ कर होने वाले हैं, वे द्रव्य जिन कहे जाते हैं । द्रव्य अरिहत की भक्ति भयंकर दुष्ट सर्प चंडकौशिक ने की थी, प्रभु से प्रतिबोधित हो उसने अपने शरीर को चींटियों से छलणी जैसा बना लिया, फिर भी प्रभु को देखकर समभाव रखा।
भाव अरिहंतः चतुर्विध संघ की स्थापना करके समवसरण में विराजित होकर जो उपदेश देते हैं वे भावजिन हैं। श्रेणिक राजा एवं सुलसा ने भाव अरिहत की भक्ति की थी।
अरिहंत पद की आराधना के तीन विभाग किये जाते हैं। प्राज तक आपने जो आराधना की वह अाराधना किसकी थी ? जो भी पाराघना पापने की वह कैसे की ? जिसने अाराधना की वह साधक कैसा था ? इन अाराधना के तीनों विभागों से प्राप स्वयं अपनी पाराधना के विषय में निर्णय ले सकते हैं।
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