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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ ] (त) रिहंत पद अन्दर गया। मंदिर से वापस बाहर निकलते समय सामने की दीवार पर एक चित्र देखा जिसमें एक व्यक्ति एक मरणासन्न बैल को नवकार सुना रहा था । वह व्यक्ति इस चित्र को देखकर अचानक बोल पड़ा, "यह तो मेरा ही चित्र है । " मंदिर का रक्षक उस श्रावक को राजा के पास ले गया, श्रावक से सब बात सुनकर राजा उसके चरणों में गिर पड़ा, बोला "मैं स्वयं ही मरणासन्न बैल था, प्रापने नमो अरिहंताणं की रट सुनाकर मुझे मनुष्य बनाया । जब मैं एक समय उस स्थान से निकल रहा था तो मुझे जाति स्मरण ज्ञान हुआ । इसीलिये मैंने अपने पूर्व भव की याद में यह नया मंदिर और यह चित्र बनाया है । मेरा यह राज्य प्रापके चरणों में अर्पित है। राजा दीक्षा लेकर देवलोक में गया और वहाँ से चल कर सुग्रीव बना | बैल के भव में धर्म नहीं था, पाप करता था परन्तु अरिहंत परमात्मा के नाम निक्षेप से मनुष्य भव में सुग्रीव बना । जिनके फाँसी का तख्ता सिंहासन बन गया, वह सुदर्शन सेठ था । पूर्व भव में उसी घर में पशु चराने वाला नौकर था । पशु चराते चराते एक बार जंगल से विहार करते किसी मुनि से नमो अरिहंताणं पद सीखा और बारंबार उसका स्मरण करने लगा । एक समय वह आँखें बंदकर ध्यानमग्न हो नमो अरिहंतारण पद का जाप करने लगा। इतने में ही उसके सब पशु नदी पार कर सामने किनारे पर चले गये । प्राँखें खोलने पर उसने देखा कि नदी में पूलया गया है और उसके सब पशु सामने के किनारे पर हैं । वह सामने के किनारे पर जाने के लिये नदी में कूदा । पानी में एक बड़ा लकड़ी का तख्ता बहकर आ रहा था, जिसके बीच में एक कोल निकली हुई थी । वह तख्ते को पकड़ने गया तो कील उसके पेट में चुभ गई, फिर भी उसने नमो अरिहंताणं की धुन चालू रखो, जिससे वहीं मृत्यु को प्राप्त हो श्रतदास का पुत्र सुदर्शन सेठ बना । ब्रह्मचर्य और श्रहिंसा की परीक्षा में पास हुआ, जिससे उसको दिया जाने वाला शूली का दंड सिंहासन में परिवर्तित हो गया । स्थापना प्ररिहंतः जिनेश्वर भगवान के शास्वत प्रशास्वत जिनबिंब, प्रतिमाजी, चित्र, चरणपादु को स्थापना जिन कहा जाता है। इससे जीवन का परिवर्तन हो जाता है । यह प्रात्मा को बहिरात्म अवस्था से हटाकर परमात्म अवस्था तक पहुंचा देता है । देवपाल नामक पशु चराने वाला जंगल में रेत के टीले पर ऋषभ For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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