________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(ग्रहंत) अरिहंत पद
हो जाय फिर जो नाद सुनाई दे, उसे प्रारंभावस्था कहते है । उसके बाद कंठ स्थित विष्णु ग्रथी का भेद होने से जो नाद सुनाई दे उसे घटावस्थानाद कहा जाता है। इसके पश्चात् भृकुटी स्थित रुद्र ग्रंथी का भेद होने पर जो नाद सुनाई दे, उसे परिचयावस्था कहते हैं । अन्त में जब ब्रह्म रघ्र में नाद की स्थिरता हो, तब वह निष्पत्यावस्था है।
भृकुटी में जो चक्र है, वहाँ से श्वास उठकर अगम चक्र के पास होकर वंकनाल के पास आकर रहता है। नाभि में श्वास है, इसकी परीक्षा कैसे की जाय ? जैसे घड़ी में चक्र के चलने से खटखट की आवाज पाती है, उसी प्रकार अपनी नाभि में भी अावाज आती है । किन्तु गुरू की मदद के बिना इस आवाज को सुनना अत्यन्त कठिन कार्य है। नाभि में खटखट होने से हृदय चक्र और कंठचक्र में होकर गले में जो छेद है उसमें से निकल कर वायु नासिका में चलता है । जो श्वास वायु बाँये छिद्र से प्रवेश करे तो दाँये छिद्र से बाहर निकलती है और बाँये छिद्र से निकले तो दाँये छिद्र से प्रवेश करती है । श्वास वायु इसी प्रकार प्राती जाती रहती है।।
हे ज्ञानानंदमय प्रात्मन् ! अरिहंत पद में मन को लगादे ।
देवपाल श्रेणिक पद साधी अरिहंत पद निजपद । देवपाल राजा और श्रेणिक राजा ने इस पद की साधना करके तीर्थकर पद उपाजित किया।
अरिहंत की भक्ति चार प्रकार से की जाती है-(१) नाम अरिहंत, (२) स्थापना अरिहंत (३) द्रव्य अरिहत और (४) भावअरिहंत ।
छद्मस्थ आत्मा के लिये चार प्रकार के जिनेश्वर पूज्य हैं, फिर भी पूजा में जैसे भाव पूजा श्रेष्ठ है, धर्म में जैसे भावधर्म श्रेष्ठ है, वैसे ही भाव तीर्थंकर की उपासना सर्वश्रेष्ठ है ।
नाम अरिहंतः अरिहंत, अरिहंत, नमो अरिहंतारणं, नमो अरिहंताणं का जाप बारंबार करना चाहिये। इससे पापमय विचारों में कमी होती है और मन पवित्र बनता है । हृदय में से विषय कषाय चले जाते हैं।
बालि राजा का छोटा भाई सुग्रीव पूर्व भव में एक मरणासन्न बैल था जो मार्ग में एक तरफ पड़ा था। एक श्रावक उधर से घोड़े पर निकला, घोड़े से उतर कर नमो अरिहंतारण का मन्त्र बैल के कान में सुनाया। बैल मर गया । २० वर्ष बाद नवकार सुनाने वाला वह श्रावक फिर उसी मार्ग से निकला । वहाँ मार्ग में एक नया जिन मंदिर देखकर दर्शन करने
For Private And Personal Use Only