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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (अ) अरिहंत पद या नहीं, यह भी नहीं कहा जा सकता। ट्रेन चलायोगे तो फिर तेज चलाओगे या धीरे ? तेज चलानोगे तो फिर दुर्घटना की संभावना है । ऐसे अनाप-शनाप तर्कों से कोई भी समस्या सुलझती नहीं बल्कि अधिक जटिल हो जाती है । ऐसे तर्कों से ड्राइवर तो बेचारा घबरा ही गया । उसके कुछ भी समझ में नहीं श्राया कि वह क्या करें ? ऐसे कुतर्कों का उत्तर तो फिर कुतर्कों से ही दिया जा सकता है । तभी कुतर्की शांत होता है । [ ३३ एक गर्म दिमाग का स्कूल इन्स्पेक्टर था, जहाँ भी स्कूल में जाँच करने जाता कुछ उटपटांग प्रश्न पूछ कर विद्यार्थियों एवं अध्यापकों को परेशान कर देता था । एक स्कूल में जाकर विद्यार्थियों से बोला, "देखो बच्चों मैं एक प्रश्न पूछता हूं, उत्तर ठीक होने पर इनाम दिया जायेगा और ठीक नहीं होने पर शिकायत पुस्तक में शिकायत दर्ज की जायेगी कि इस स्कूल में पढ़ाई ठीक नहीं होती । "विद्यार्थी शिक्षक और प्रधानाध्यापक सभी घबराने लगे । इन्सपेक्टर बोला, एक हवाई जहाज बम्बई से दिल्ली के लिये उड़ा बम्बई से दिल्ली १४०० कि.मी. है । हवाई जहाज १००० कि.मी. प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ रहा था । बताओ मेरी उम्र क्या होगी ?" प्रश्न सुनकर सभी भौंचक्के रह गये, सभी मौन थे। किंतु एक विद्यार्थी जानता था कि यह प्रश्न मात्र ठगने के लिये है, तब हम भी ऐसा ही उत्तर क्यों न दें । शठे शाठयं के समाचार के अनुसार जैसे को तैसा जबाब देना चाहिये । बोला, "मैं उत्तर दे सकता हूं ।" इंसपेक्टर के हाँ भरने पर उसने कहा, "मेरा बड़ा भाई आधा पागल है, वह बीस वर्ष का है, इसका सीधा सादा अर्थ यह हुआ कि आपकी उम्र (क्योंकि आप पूरे पागल हैं ) ।" इंसपेक्टर खुश हो गया, तुझे धन्यवाद ! मेरी उम्र वास्तव में ४० वर्ष की है ।" ४० वर्ष की है बोला" बच्चा ! For Private And Personal Use Only आत्म विचार तो श्रद्धा से होना चाहिये । श्रद्धा की दृढ़ता के लिये तर्क भी श्रावश्यक है। किंतु वह कुतर्क नहीं होना चाहिये । तत्त्वों के अर्थ की श्रद्धा ही तो सम्यक् दर्शन है । ध्यान से लाभ क्या हैं ? जैसे जल से मैल दूर होता है, अग्नि से कल दूर होता है, सूर्य की धूप से कीचड़ सूख जाता है, उसी प्रकार ध्यान से कर्म जल जाते हैं । ध्यान से चित्त प्रसन्न होता है । चित्त की प्रसन्नता दो कार्य करती है, वह श्रार्त ध्यान रौद्रध्यान को रोकती है तथा श्रात्मा को
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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