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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (महत) अरिहंत पद क्या हमारी प्रात्मा भी परमात्मा बन सकती है ? यह प्रापका महत्वपूर्ण प्रश्न है। जिस प्रकार से रसायन योग से लोहा भी सोना बन सकता है, उसी प्रकार हमारी आत्मा भी परमात्मा के ध्यान से स्वयं परमात्मा बन सकती है। ध्यान में प्रात्म विचार की प्रधानता होती है। अंग्रेजी में प्रश्न होते हैं what, why, how, who, when और where यही प्रश्न हमें प्रात्मा के विषय में करने हैं ? प्रात्मा क्या है ? प्रात्मा संसार में क्यों परिभ्रमण करती है ? वह किस प्रकार जन्म धारण करती है? यह प्रात्मा कौन है? जड़ है या चेतना है ? अात्मा को पाप या पुण्य कब से प्राप्त हुए ? आत्मा का मोक्ष कहाँ होगा ? उपरोक्त पद्धति से आत्म विचार किया जाता है। क्या आत्मविचार में तर्क की आवश्यकता है ? शास्त्र यह नहीं कहते कि तर्क मत करो तर्क तो अवश्य करना चाहिये, तर्क ही तो विद्या के प्राभूषण हैं। तर्क तो प्राचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने भी किया था। उन्होंने स्वयं शंका प्रस्तुत को और तर्क से स्वयं ही उसका समाधान भी किया। तर्क से पदार्थ की सिद्धि होती हैं. किंतु यदि तर्क असीमित हो जाय तो वह वितर्क हो जाता है। एक ट्रेन ड्राइवर ने ट्रेन चलाते हुए मार्ग में एक भयंकर दुर्घटना देखी, जिसे देखकर वह काँप उठा । वह एक ज्योतिषी के पास पहुँचा और अपने बारे में पूछने लगा कि उसे ट्रेन चलाना चाहिये या नहीं ? ज्योतिष ने कहा शनि का प्रबल योग है, संभाल कर ट्रेन चलाना, दुर्घटना हो सकती है। इसके बाद वह एक दार्शनिक के पास गया और उससे पूछा। दार्शनिक ने कहा देखिये ड्राईवर साहेब ! ट्रेन चलाने में दो संभावनाएँ हो सकती हैं। तुम गाडी तेज चलाओ या धीरे ? धीरे चलायो तो दुर्घटना की संभावना नहीं, तेज चलाओगे तो दो संभावनाए हैं. दुर्घटना हो भी और न भी हो। दुर्घटना न हो तो अच्छा ही है, किंतु यदि दुर्घटना हो जाय तो दो संभावनाएं हैं, या तो तुम्हारी मृत्यु हो जायगी या अंग भंग हो जायगा । मृत्यु हो जाय तब तो सब समाप्त ही है, पर यदि अंगभंग हो जाय तो सर्जरी से अंग जोड़े जायेंगे या न भी जोड़े जाय । अंग जुड़ भी सकते हैं और न भी जुड़ें । सर्जरी के बाद तुम ट्रेन चला सकोगे For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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