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रागादि
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सकता ? कहना होगा कि भ्रमर को कमल के प्रति राग है, इसी लिये वह उसे नहीं छेदता ।
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ज्ञानियों ने तो स्पष्ट कहा है कि मनुष्यों को धन और रूपवती स्त्रियों पर जितना राग होता है, यदि उतना राग जिनेश्वर भगवान में हो जाय तो मोक्ष तो उसके बाँये हाथ का खेल है ।
राग भी आपको डसता है और वेदनीय कर्म भी डसता हैं । आप सभी वेदनीय कर्म के इसने से बचना चाहते हैं इसलिये तप जप आदि करते हैं । किंतु राग को डसने से बचाने के लिये प्राप कुछ भी उपाय नहीं करते । क्यों ? इसलिये कि राग का डंक आपको तीक्ष्ण नहीं लगता । वेदनीय कर्म का डसन आपको बिच्छु के डंक के समान तीक्ष्ण लगेगा परन्तु वह आपके प्राणों का हररण नहीं करता और आत्मा के सद्गुणों को नष्ट नहीं करता परन्तु राग का डंक तो सर्प का डंक है, यह मनुष्य को तीक्ष्ण नहीं लगता पर है यह मीठा जहर, यह मानव को बेभान कर देता है । बिच्छु की अपेक्षा सर्प का डंक अधिक भयंकर है । इसी प्रकार वेदनीय की अपेक्षा राग भयंकर है। आपको वेदनीय कर्म से बचने के लिये राग का सर्वथा त्याग करना ही पड़ेगा । राग आपको रुलाता भी है और हंसाता भी है - जब तक राग दशा है, तब तक आपको अशांति कायम रहेगी ।
एक माता अपने बालक को लेकर जहाज से आने वाले अपने पति को लेने बम्बई गई। वहाँ जाकर एक धर्मशाला में एक कमरा लेकर ठहर गई। उसके पति का जहाज दूसरे दिन आने वाला था पर संयोग से उसी दिन शाम को प्रा गया और वह भी उसी धर्मशाला में एक कमरा लेकर ठहर गया । आधी रात को बालक को बहुत तेज बुखार श्राया और पेट में दर्द भी होने लगा । बालक जोर-जोर से रोने चिल्लाने लगा । रोने की श्रावाज सुनकर साहब गर्म हो गये, आधीरात को धर्मशाला के व्यवस्थापक को बोले कि "इस बालक को यहाँ से निकाल दीजिये, मेरी नींद हराम हो रही है । " व्यवस्थापक ने माँ बेटे को निकाल दिया । असहाय माँ तेज बुखार में बेटे को लेकर जब बाहर निकलने लगी तो साहब ने अपनी स्त्री को पहिचान लिया । फिर तो बड़े ही प्रेम से अपने पुत्र को पुचकारने और चुप कराने लगा । उसी समय डाक्टर को बुलवा कर उसका उपचार करवाया। देखा आपने राग का प्रभाव !!
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