________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
योगी किसे कहते हैं ?
प्रयत्न द्वारा यत्न करता हुमा योगी अनेक जन्मों से एकत्रित पाप को धोकर परमात्म पद को प्राप्त करता है । भगवद् गीता में भी कहा है कि
'तपस्विम्यश्चाधिको योगी, तस्माधोगी भवार्जुनः ।'
तपस्वी से भी योगी बढ़कर है, ज्ञान से भी योगी अधिक है, कर्मो से भी योगी अधिक है, अतः हे अर्जुन ! तू योगी बन । योगी की मस्ती देखिये
'अय दिल ! तुझे क्या हर्ष करना है, तुझे संसार क्या करना। सदा जंगल में रहना है, तुझे घर बार क्या करना ।। हमें दौलत की क्या परवाह, तले टकसाल झरती है।
जलने वालों की यह आदत है, यहाँ तो मौजें उड़ती हैं ।।' तुलसीदासजी ने भी कहा है--
'तुलसी या संसार में समसे मिलिये धाय। क्या जाने किस वेप में, नारायण मिल जाय ।"
आज के बुद्धिवादी युग में पले हुए किसी प्रगतिवादी ने तुलसीदास जी को भी हंसी में उड़ा दिया:
'बेढ़ब या संसार में सबसे मिलिये धाय ।
न जाने किस वेष में सी आई डी मिल जाय ।' भगवान् महावीर ने तो पहले ही कह दिया है कि:
'भुज्जो य साड् बहुला मणुस्मा नो पमायए ।'
संसार में कपटी मनुष्य अधिक है, अत: ए लोगों ! गाफिल मत रहो, प्रमाद मत करो।
योगी को जगल में ही क्यों रहना चाहिये ? इस विषय में भी शास्त्र ने कहा है कि:
'जनेम्यो वाक ततः स्पन्दो मनसश्चित्त विभ्रमः । भवन्ति तस्मात्संसर्ग: जैनर्योगी ततस्त्यजेत् ।।'
For Private And Personal Use Only