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योगी किसे कहते हैं ?
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आप भी साधक हैं। यदि आप सुख प्राप्त करने के लिये जड़ वस्तुत्रों के समक्ष भिखारी बनकर मानते हैं कि आपको सुख मिलेगा, तो यह आपकी भारी भूल है। जो स्वयं नाशवान् है, वह आपको शास्वत सुख कहाँ से देगी ? जरा भीतर डुबकी लगाइये, अनंत सुख तो आपके भीतर भरा हुआ है। कहा भी हैं
'जगदीश ने जोवा मारे दसे दिशा अथड़ायो रे। जागी ने जोयो तो, ए तो धरमां ही जहुयोरे ।।"
चेतना- ब्रह्म या प्रभु आपके भीतर ही हैं। बाहर उसे ढूढने की आवश्यकता नहीं है । मात्र भीतर झाँक कर उसे पहचानना है
'जगत ना नाथ ने जाण्या बिना, सों धूल धाणी छ।
प्रभु निरख्या बिना नयने, उभी चौरासी खाणी रे ।।' योगी किसको कहते हैं ? 'योगः समाधिः सोऽस्यांस्ति इति योगवान्' ।
(उ.बृ.व.) जिस व्यक्ति की आत्मा में समाधि हो, उस योगवान् को योगी कहा जाता है। योगी पुरुष के लक्षण क्या हैं ? 'निर्भयः शक्रवद् योगी नन्दत्यानन्दन नन्दने'
-(ज्ञान साराष्टक) इन्द्र के समान निर्भय योगीराज प्रात्म-आनन्द रूपी नन्दन वन में विहार करते हैं।
'यतो यतो निश्वरति मनश्वाचलमस्थिरम् ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ।।"
जिस-जिस मार्ग से चंचल मन अस्थिर होता है, उसके प्रतिपक्षी मार्ग द्वारा रोककर योगी पुरुष प्रात्मा में ही मन को स्थापित कर चंचल मन को वश में कर लेते हैं। कहा भी है
'प्रयत्नाधतमानस्तु योगी संशुद्ध किल्विषः अनेकजन्म संसिद्धिस्ततो याति परांगतिम् ।।'
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