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योगी किसे कहते हैं ?
__ जहाँ अधिक लोगों से संसग होता है, वहाँ बोलना भी पड़ता है। बोलने से मन में स्पन्दन होता है । स्पन्दन से संकल्प विकल्प होते हैं। इनके बढ़ने से चित्त भ्रमित होता है, अतः योगी को जन सम्पर्क का त्याग करना चाहिये।
सुखी मनुष्य की पहचान क्या है ? बाह्य साधनों के प्रति जो व्यक्ति उदासीन हो, वह वास्तव में सुखी हैं। जो व्यक्ति जितना अधिक बाह्य साधनों के पोछे पड़ा हुया है, वह उतना ही अधिक दुःखी है । योगियों की लब्धि के विषय में कहा गया है:--
'कफ विपुण्मलामर्ष सर्वोषधिमहयः । संमिन्नश्रोतो लब्धिश्च योग तांड वडं वरं ॥'
योगी पुरुष का कफ, शुक्र मल और शरीर का स्पर्श आदि सभी औषधि का काम करते है । महान् प्रभावशाली औषधि भी जो काम नहीं कर सकती, वह काम योगी का कफ, मल, मूत्र प्रादि कर देता है। एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक सभी जीवों को योगी के स्पर्श मात्र से आनन्द और शांति प्राप्त होती हैं । ऐसी लब्धि और शक्ति योगी में योग के प्रभाव से ही उत्पन्न होती है।
कल्पक मंत्री के घर में गुरु भगवान् का प्रवेश कराया गया। एक व्यतरिगृह कल्पक बालक को बहुत कष्ट दे रहा था, किंतु जैसे ही गुरु ने घर में प्रवेश किया और उन्हें पानी बौराया गया तो उनके पात्र में पानी का कल्पक स्पर्श होते ही व्यंतर भाग गया। सनत कुमार चक्रवर्ती ने ७०० वर्ष चरित्र पालन किया, उनको ऐसी लब्धि प्राप्त हो गई कि सरस, विरस, अनियमित प्रोक्षर से जो रोग हुप्रा वह अंगुलियों के स्पर्श मात्र से मिट जाता । यहां तक कि अंगुली पर थूक का स्पर्श होने से अंगुली स्वर्ण जैसी बन गई।
योगियों की लब्धि के विषय में शास्त्र कहता हैं:
'चारणाशी विषावधिमनः पर्याय संपदः । योग कल्पद्मस्यैता विकासीकुसुमश्रियः ।।'
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