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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ ] योग किसे कहते हैं ? करना हवा को पकड़ कर ऊपर जाने जैसा कठिन कार्य है। बेचारा चहा बिल्ली के नाश का विचार तो करता रहता है, पर कर नहीं सकता, इसी प्रकार कई लोग चित्तवृत्ति निरोध की बात तो करते है, पर कर नहीं सकते। गीता में कृष्ण ने समता को ही योग कहा है, 'समत्व योग उच्यते'। व्यासजी ने कर्म में कुशलता को ही योग कहा है, 'योगः कर्मसु कौशलम' । व्याकरण में धातु प्रत्यगत अर्थ यौगिक अर्थ (रूद्र नहीं) को योग कहते हैं । रसायन क्रिया में दो भिन्न पदार्थों के मिलने से नये पदार्थ को उत्पत्ति को योग कहते है । गणित में जोड़ को योग कहते है। द्वादशांगी चार अनुयोगमय है:-द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, कथानुयोग और चरणकरणानुयोग। श्री भद्रबाहु स्वामी ने प्रावश्यक नियुक्ति में साधु की व्याख्या करते हुए बताया है कि: 'निव्वाण साहए जोगे जम्हा साहति साहुणो' जिन्होंने निर्वाण साधक योग की साधना की है या करते हैं वे ही साधु हैं । अर्थात् जहां योग की साधना है, वहीं योगाभ्यास है और वहीं साधुता है। जहां योग साधना नहीं वहां योगाभ्यास नहीं और जहां योगाभ्यास नहीं वहां साधता भी नहीं। आपके सामने दो मार्ग हैं १. भौतिक मार्ग और २. आध्यात्मिक मार्ग । आपको कौनसा मार्ग अपनाना है, यह पाप ही निश्चित कर सकते है । क्योंकि: 'शुभाशुभाम्यां मार्गास्यांवहति वासना सरित् । पौरुषेम प्रयत्नेन योजनीया शुभेपथि ।' मन की नदी शुभ और अशुभ मार्ग में बहती हुई पुण्य और पाप का अर्जन करती है । आपको क्या अर्जन करना है ? __ 'जं छेयं तं समाचरे' जो श्रेयस्कर है, कल्याणकारी है, उसका प्राचरण करें। __ योग शब्द युज् धातु से बना है । युज् अर्थात् जोड़ना । मोक्ष के साथ जिस कार्य से जुड़ा जा सके वह योग है। For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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