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योग किसे कहते हैं ?
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का बौद्ध धर्म की मान्यताओं के अनुसार परिवर्तित रूप का चीनी भाषा में अनुवाद भी हो गया था; किंतु उसका महत्व यदि चीन में बढ़ा है तो उसका श्रेय एक भारतीय भिक्षु शुभंकर को जाता है, जिसने सन् ७१६ ई. में उस देश की यात्रा की थी। उन्होंने उस समय के प्रसिद्ध मठाधीश त्सान गोसेइ को, जो श्राइडिंग के नाम से जाने जाते थे, भारतीय दर्शन की शिक्षा दी थी। फलतः शुभंकर को उनका समर्थन मिला और चीनी राज दरबार में श्रादर मिला ।
इसी पातंजलि योगदर्शन पर १४४४ ग्रंथों के रचयिता समर्थ शास्त्रकार हरिभद्रसूरि महाराज ने योगविंशीका ग्रंथ की रचना की । इसी योगविंशीका पर न्यायावतार यशोविजयजी म. सा. ने संस्कृत में टीका की ।
योग के कितने प्रकार है ? योग बिंदु में योग के पांच प्रकार बताये गये हैं:- १. अध्यात्म योग २. भावना योग ३. ध्यान योग ४. समता योग और ५ वृत्ति संक्षेप योग। इसमें प्रथम अध्यात्म योग तत्त्व चितक रूप है और भावना योग अध्यात्म योग का निरन्तर अभ्यास करने से सिद्ध होता है । उपरोक्त दानों योगों की सिद्धि के फलस्वरूप ध्यान योग की शक्ति प्रस्फुटित होती है । ध्यान योग के प्रभाव से इष्ट अनिष्ट पदार्थों में एवं मान अपमान की परिस्थितियों में जो प्रखंड समभाव रहता है वहीं समता योग है । चारों योगों के फलस्वरूप मन की विकल्प रूप वृत्ति तथा शरीर की हलन चलन रूप प्रवृत्ति के क्रमशः निरोध होने पर वृत्ति संक्षेप योग होता है । ध्यान विचार ग्रंथ में योग के ६६ प्रकार बताये गये है । योग दर्शन तत्त्व के समुचित संग्रहकारक भगवान पातंजलि योगदर्शन में कहते हैं कि:'योगश्चित्तवृत्ति निरोधः । चित्तस्य वृत्तिनाम् निरोधः यस्मिन् सः योगः '
जिससे चित्रवृत्ति का निरोध होता हो, उस क्रिया को योग कहते है। 'समाधीयन्ते निरुद्धयन्ते एकागीक्रियते चित्तवृत्तयो यस्मिन्नवस्था विशेषे'
जिस अवस्था विशेष में चित्र वृत्तियों का निरोध हो, समाधि तक पहुँचा जाय और चित्त को एकाग्र किया जा सके, वह योग है ।
'चित्त वृत्ति निरोध' कहना बहुत सरल है, परन्तु उसका पालन
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