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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रचौर्य व्रत जाये तो उसे अदत्त का दोष लगता है । किसी के घर में ठहरने के लिये गहस्वामी की आज्ञा लेनी चाहिये । उपाश्रय में रहने पर साधु ने गृहस्थ से अवग्रह माँगा था, अब नये पाने वाले साधु को पूर्व में ठहरे साधु से पूछ कर ही वहाँ ठहरना चाहिये। बिना आज्ञा ठहरने पर स्वधर्मी अदत्तादान दोष लगता है । प्राप्त किया हुअा अन्न, पानी, वस्त्र, पात्र गुरु या आचार्य को दिखाकर उपयोग में लेना चाहिये, क्योंकि वस्तु निर्दोष है या सदोष, फलदायक है या कष्टदायक यह गुरु ही जानते हैं । जैसे असत्य के मूल में चार कारण है, वैसे ही अदत्तादान के मूल में असंतोष है । अदत्त अर्थात् स्वामी की आज्ञा के बिना लिया हुआ। इसके भी चार प्रकार हैं:---- (१) स्वामी अदत्त : वस्त्र, पात्र, कंबल आदि उसके स्वामी की आज्ञा बिना ग्रहण करना । (२) जीव अदत्त : सचित्र फल, फूल, अनाज अथवा कोई भी वस्तु जो किसी जीव के शरीर के रूप में हो उसे उसकी प्राज्ञा बिना काटना, छेदना, पकाना आदि जीव अदत्त कहलाता है। (३) तीर्थकर अदत्त : अचित्त होते हुए भी जो प्राधाकर्मादि दोष से युक्त हो, ऐसे दूषित आहार को लेना थिंकरों द्वारा निषिद्ध है । श्रावक अचित्त होते हुए भी अनंत काय, अभक्ष आदि पदार्थ खाये तो इसमें भी तीर्थंकर भगवान की प्राज्ञा नहीं है, फिर भी खाये तो तीर्थंकर अदत्तादान का दोष लगता है। (४) गुरु प्रदत्त : ४७ दोष रहित कल्पती वस्तु हो तब भी साधु जिसकी नेत्राय (सेबा) में हो उन गुरु आदि को निमन्त्रण किये बिना, उनको दिखाये बिना, उनकी प्राज्ञा प्राप्त किये बिना यदि उपयोग में ले तो गुरु प्रदत्त दोष है। अतिचार : आपके पाठ पुत्रिय हुई, उनके विवाह में दहेज आदि का काफी खर्चा किया, जिससे तीसरे अचौर्य व्रत के पालन में आपकी प्रवृत्ति कम हुई । चोर लुटेरों द्वारा लाया गया चोरी का माल आपने आधे दामों में खरीदा और पूरे पैसों में बेचा, इससे आपको स्नेता हृद अतिचार लगा । जब आपको For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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