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अचौर्य व्रत
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पर फार्म के पैसे तो वापस करने ही नहीं थे, इस प्रकार दस लाख से अधिक का धन बटोर लिया। आपकी भाषा में ऐसे लोगों को व्हाइट कलर कीमिनल (सफेद चोर) कहा जाता है ।
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एक व्यक्ति शानदार कोठी में बड़ो शान शौकत से रहता था । उसके पास चोरी का बड़ा ही अनोखा तरीका था। पुलिस को भी उस पर शक नहीं होता था । उसने एक तिजोरी बनाने वाले कारखाने के मैनेजर से मित्रता गांठ रखी थी। वह मैनेजर के पास श्राता जाता ही रहता था । उससे वह पता लगा लेता कि किस नंबर की तिजोरी किस व्यापारी ने खरीदी है । बातों ही बातों में वह उस नंबर की चाबी की डिजाइन भी जान लेता था । फिर चाबी बनाकर ऐसी सफाई से अपने हाथों में दस्ताने पहन कर माल उड़ाता था कि कोई सबूत पीछे नहीं छोड़ता था । उसकी निजी डायरी में चात्रियों के नंबर डिजाइन और तिजोरियें खरीदने वाले व्यापारियों के पते लिखे थे ।
धन को चार भागों में बाँटा जा सकता है। सफेद वन, काला धन, गुप्त धन और ट्रस्ट धन । इनमें से सिर्फ सफेद धन ही नीतिपूर्वक कमाया हुआ धन है, जिसे सरकार द्वारा भी मान्यता प्राप्त है । सरकार की दृष्टि से बचाकर कमाया हुआ धन काला धन है । पत्नी या परिवार के सदस्यों की आँखों में धूल डालकर बचाया हुआ धन गुप्त धन है । धार्मिक ट्रस्ट बना बना कर उसके धन को ब्याज से प्रपने काम में लेना ट्रस्ट धन का दुरुपयोग है। सफेद धन को छोड़कर शेष तीन प्रकार के धन का उपार्जन प्रकारान्तर से चोरी द्वारा ही हो जाता है ।
साधुओं को भी अपने रहने के उपर्युक्त स्थान या उपाश्रय गृहस्थ से माँग कर उसकी प्राज्ञा प्राप्त कर रहना चाहिये । इस मकान या स्थान को नवग्रह कहते हैं । ग्रवग्रह के पाँच स्वामी होते हैं:- इन्द्र, चक्रवर्ती, राजा, गृहस्वामी, स्वधर्मी । यदि पहले से साधु किसी उपाश्रय में ठहरे हुए हों और नये साधु या जावें तो वे पहले ठहरे हुए साधुओं से पूछकर ही वहां ठहरे, वर्ना स्वधर्मी दोष लगता है ।
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चक्रवर्ती और सामान्य राजा की भी अपनी मर्यादा होती है । उस मर्यादा के बाहर चलने फिरने की सामान्य प्रजा की प्राज्ञा नहीं होती । ऐसे निषिद्ध स्थान में साधु को माना जाना नहीं चाहिये । यदि ऐसे स्थान में