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अचीय व्रत
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और अधिक बढ़ाने की इच्छा रहती है, जिससे संतोष और न्याय व्यवस्था को तोड़कर वह धीरे धीरे चोरो की प्रवृत्ति करने लगता है । शास्त्र में कहा है
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'अनादान मदत्तस्यास्तेयव्रतमुदीरितम्
बाह्याः प्राणाः नृणामर्थो हरता तं हवाहिते ||
बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण न करना अदत्तादान महाव्रत है । मनुष्य का बाह्य प्राण धन ही है, उसके अपहरण से ही उसके प्राणों का अपहरण हो जाता है । यचौर्य शब्द चोरी का निषेध वाचक शब्द है । अतः पहले यह जानना जरूरी है कि चोरी क्या है ? आपका १० वर्ष का पुत्र बिना पूछे प्रापकी जेब से दस रुपये निकालता है, दूसरे पुत्र को आप अपने हाथ से दस रुपये देते हो । दफ्तर का खजांची आपसे बिना पूछे रुपये ले जाता है, दूसरी ओर वह आपसे पूछ कर ले जाता है। आपका मित्र विना बताये ही आपकी टेबल से हाथ घड़ी ले जाता है, दूसरी ओर आप स्वयं उसे घड़ी देते हो | इन तीनों उदाहरणों में ग्राप चोरी उसे ही कहेंगे जो धन या वस्तु आपकी आज्ञा के बिना ली गई है। जो वस्तु पूछकर ली गई है वह चोरी नहीं है ।
योगशास्त्र में चोरी के लिये श्रदत्तादान शब्द का प्रयोग किया गया है । 'अदत्तादानमस्तेयम्' बिना दी हुई वस्तु को लेना चोरी है ।
ज्यों ज्यों वैज्ञानिक उन्नति हो रही है त्यों त्यों चोरी के भी वैज्ञानिक तरीके प्रकाश में आ रहे हैं। नौकरी दिलाने का विज्ञापन देकर, इस बहाने से लोगों से धन ऐंठना । किसी व्यक्ति ने अखबार में विज्ञापन दिया, " स्कूटर बुक कराने वालों के लिये सुनहरा अवसर । फार्म की फोस दस रुपये जो वापस नहीं होगी । इसके अतिरिक्त २५०/- रुपये बैंक ड्राफ्ट से जमा करायें जो स्कूटर देते सयय कीमत में से कट जायेंगे या बुकिंग रद्द कराने पर प्रार्थी को वापस लौटा दिये जायेंगे | धडाधड लोग बुकिंग कराने लगे । शानदार ग्रॉफीस, टेलीफोन, चार चार कर्मचारी, टाइपिस्ट, चौकीदार और मालिक का व्यक्तित्व भी प्रभावशाली। तीन महीने में एक लाख से अधिक लोगों ने नाम लिखवा दिये । तीन महीने बाद फिर प्रखबार में सूचना निकली कि स्कूटर एजेंसी रद्द, बुकिंग कराने वाले अपना पैसा वापस ले जाये । उसने बैंक ड्राफ्ट का धन सबको वापस कर दिया,
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