________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अर्थ पुरुषार्थ
सेवक से कहा कि जा उसे कह दे कि इसको पढ़कर इसमें लिखी वस्तु शीघ्र भेज दे । पंडित का मित्र भी विद्वान था, उसने जब उस कागज के पुर्जे को देखा तो वह उसका अर्थ करने लगा। चार क यानी 'कचारि' इसका संधि कर दें तो हो जायेगा 'कच-+-अरि' अब शब्दार्थ हो गया। कच - बाल
और अरि = शत्रु यानि बाल का शत्रु नाई । मित्र ने शीघ्र नाई को भेज दिया इस प्रकार एक ही शब्द के अपनी इच्छानुसार भिन्न भिन्न अर्थ निकाल कर अपना प्रयोजन (कार्य) सिद्ध करने को प्रयोजन कहते हैं ।
'अर्थ' शब्द का दूसरा अर्थ है धन । कोई कोई व्यक्ति तो मम्मरण सेठ की भो ति एक मात्र धन को ही साधना करते हैं । परन्तु ऐसा करना अयोग्य है क्योंकि धर्म और काम का उल्लंघन कर उपाजित धन का उपभोग प्रायः अन्य लोग ही किया करते हैं और पाप का भागो उपार्जक स्वयं होता है : जैसे हाथो का वध करने वाला शिकारी हाथी दांत का उपयोग नहीं करता, हाथी दांत और हस्तिन्मुक्ता का उपयोग तो कोई अन्य लोग ही करते हैं।
एक करोड़पति सेठ को बीमार हो जाने पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। जब बीमारी कुछ ठीक हुई. तब अस्पताल से छुट्टी लेकर आराम करने हेतु घर पर ले आये । सेठजी घर में पलग पर सो रहे थे, पास ही सेठानी बैठी थी, तभी सेठानी की कुछ सखियें आ गई और पूछा, 'सेठजी की तबीयत कैसी है ?'
सेठाणी ने कहा, 'तबियत में कुछ सुधार तो हुना है, पर अभी पूर्ण स्वस्थ नहीं हुए हैं । यदि सेठजी जीवीत रहते हैं तो एक लाख का लाभ है और यदि मृत्यु हो जाय तो सवा लाख का लोभ है।"
एक सखी ने पूछ ही लिया, "वह कैसे ?"
सेठानी ने कहा, “सेठजी में अभी काफी जीवन शक्ति है, घर दुकान का काम अच्छी तरह संभाल सकते हैं, अतः यदि जीवित रहें तो एक लाख रुपया कमा कर दे सकते हैं, और यदि मृत्यु हो तो सवा लाख का बीमा किया हुया है, सो तो मिलेगा ही।"
देखा आपने ! धर्म रहित अर्थ पुरुषार्थ की विडंबना को !! पति के मृत्यु की इच्छा उसकी जीवन संगिनी कर रही है । यही तो है राग द्वेष
For Private And Personal Use Only