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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ पुरुषार्थी [ ६७ अादि कषायों की वृद्धि कर इस जीव को संसार में भटकाने वाला धर्म रहित अर्थ पुरुषार्थ ! भूत भविष्य और वर्तमान तीनों कालों में होने वाले सारे युद्धों के मूल में यह संग्रहवत्ति ही है । धनवान् लोग अपनी संपत्ति को बढ़ाते गये। राजा महाराजा लोग अपने राज्य की सीमा को बढ़ाते गये । सत्ताधारी सत्ता के क्षेत्र में वृद्धि करते गये । तभी क्राँतियाँ हुई, युद्ध हुए, विग्रह खड़े हुए। सभी लड़ाई झगड़ों का मूल तो परिग्रह अर्थात् धन संपति, राज्य, शक्ति प्रादि का संग्रह ही है। धन की लालसा का बड़ा पाप निर्दयता है । धन की मूर्छा मनुष्य को निर्दयी बनाये बिना नहीं रहती। ___ आप पूछेगे कि संपत्ति के पीछे इतनी मूर्छा क्यों होती है ? क्योंकि धन ही शक्ति का माध्यम है । धन में अनेक वस्तुओं को खरीदने की शक्ति है। सुख के समस्त भौतिक साधनों की प्राप्ति धन से ही हो सकती है। इस शरीर रूपी मकान को छोड़ने की तैयारी करने वाला मनुष्य भी मरते दम तक धन का त्याग नहीं कर सकता। जब धन में इतनी शक्ति है, तब उसकी प्राप्ति में और उसकी स्थिरता में कितने परिश्रम और मावधानी की आवश्यकता होगी ? संग्रहवत्ति (परिग्रह) प्रात्मा को भिखारी बना देती है । आत्मा के अन्य लोक में चले जाने पर सारी संपत्ति यहीं पड़ी रह जाती है, तब उसे लेने के लिये वह आत्मा वापस नहीं आती, उसे कोई अन्य ही भोगते हैं। सब का लक्ष्य अपने ध्येय में सफल होना है। मनुष्य पुरुषार्थ करता है किंतु सभी को सफलता नहीं मिलती। सफलता न मिलने का कारण क्या है ? वैदिक दर्शन वाले कहेंगे कि 'ईश्वर की ऐसी ही इच्छा थी।' 'ईश्वर को यही पसंद होगा ।' जैन दर्शन कहता है कि सफलता के पाँच हेतु हैं-काल, स्वभाव, कर्म, पुरुषार्थ और नियति ।। प्रत्येक कार्य की सफलता असफलता काल पर आधारित है। सर्दी में गर्म पदार्थ और गर्मी में ठडे पदार्थ क्यों अच्छे लगते हैं ? क्योंकि उस काल का वह स्वभाव है। विश्व की प्रत्येक वस्तु समय (काल) सापेक्ष होती है। औषधि कितनी ही श्रेष्ठ क्यों न हो, वह गले के नीचे उतरते ही For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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