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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रर्थ पुरुषार्थ दशवैकालिक सूत्र की प्रथम गाथा 'धम्मो मंगल मुकिट्ट' के ५० अर्थ किये थे । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री नमस्कार मंत्र में चौदह पूर्व का समावेश होता है । पाँच समिति तीन गुप्ति, प्राठ प्रवचनमाता में द्वादशांगी का समावेश होता हैं । 'अनेकार्थ रत्न मंजूषा' में नमो अरिहंताण पद के एक सौ आठ अर्थ किये हैं । इसी ग्रंथ में 'धम्मो मंगल मुकिट्ट' पद के १०८ और गायत्री मंत्र के १०८ अर्थ किये गये हैं । इसी प्रकार 'भुत्रलय ग्रंथ' ७०० भाषाओं में लिखा गया है ।' उत्पलव ग्रंथ' के रचयिता हषं ने उसमें अनेक युक्तियों द्वारा संसार के सभी धर्मों का खंडन किया है । 'हरि आयो हरि उपन्यो, हरि पुठे हरि धाय । हरि गयो झट हरिना विये, हरि बेठो वा खाय || 'सप्तानुसंधान' महाकाव्य के एक एक श्लोक में क्रमबद्ध सात-सात महापुरुषों के चरित्र वरिंगत हैं । देखिये : -- [ एक अन्य उदाहरण: 'सुवर्ण को ढूढत फिरे, कवि कामी और चोर | चरण धरत पीछे फिरे, चाहत शोर न मोर ।' ६५ अर्थात् वर्षा आने से मेंढक उत्पन्न हुम्रा । सर्प मेंढक के पीछे दौड़ा, तब मेंढक शीघ्र पानी में डुबकी लगा गया, अतः सर्प मेंढक की अनुपस्थिति में वायु भक्षरण करने लगा। यहां एक 'हरि' शब्द के अनेक अर्थ हुए हैं । For Private And Personal Use Only अर्थात् कवि सुवर्ण (सुन्दर अक्षरों) को ढूंढता है । कामी पुरुष सुवर्ण ( सुन्दर रूपवती स्त्री) को ढूंढता है और चार सुत्र ( धन सोना ) को ढूंढता है । कवि श्लोक का चरण (पाद) बनाकर मुड़ जाता है । कामी पुरुष और चोर चररण (पांव) रख रखकर पीछे मुड़कर देखता है, कहीं उसे कोई देख न ले, भयभीत है कि कहीं पहचान लिया न जाय, अतः वह किसी प्रकार की आवाज को पसंद नहीं करता । कवि तो मयूर को बार बार पीछे मुड़कर देखता है, किन्तु चोर को तो उसकी आवाज पसंद नहीं है । यहां 'सुवर्ण' और 'चरण' शब्द के भिन्न भिन्न अर्थ हुए हैं । एक पंडित ने अपने मित्र को चार 'क' लिखकर भेज दिये और अपने
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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