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अर्थ पुरुषार्थ कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि ने गृहस्थ जीवन को सुन्दर और सुव्यवस्थित बनाने के लिये योगशास्त्र में चार पुरुषार्थो का वर्णन किया है । वे चार पुरुषार्थ हैं:-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । धर्म, अर्थ और काम इन तीनों को त्रिवर्ग कहा जाता है । पर धर्म को मोक्ष के साथ भी प्राय: जोड़ा जाता है। ऐसा क्यों ? इसलिये कि धर्म का ध्येय ही मोक्ष है ।
साध भी एक साधक है और गृहस्थ भी एक साधक है । वैसे दोनों ही के जीवन में साधना है, किंतु दोनों के मार्ग भिन्न-भिन्न हैं । साधु घर परिवार से संबंध विच्छेद कर एकाकी बन कर आत्म-साधना में लीन होते हैं । इन पर घर परिवार की कुछ भी जिम्मेदारी नहीं होती, जबकि गहस्थ के सिर पर घर परिवार की पूर्ण जिम्मेदारी होती है । गृहस्थ के पास धर्म के साथ साथ अर्थ और काम के भी क्षेत्र हैं, क्योंकि अर्थ (धन) के बिना गृहस्थ जीवन नहीं चल सकता और संसार की वृद्धि के लिये काम भी एक प्रावश्यक पुरुषार्थ है । अत: गृहस्थ के लिये धर्म के साथ साथ अर्थ और काम पुरुषार्थ को जोड़कर त्रिवर्ग की सृष्टि की गई है।
__ अर्थ के भी दो शब्दार्थ होते हैं: -- एक धन और दूसरा प्रयोजन । पहले हम प्रयोजन शब्दार्थ पर कुछ विचार कर लें। बाजार में जाकर स्टेशनरी की दुकान पर एक ग्राहक ने पूछा, "यह पेन कितने का है ?" दुकानदार ने कहा, "पाठ रुपये का ।"
ग्राहक-"कीमत तो ठीक है पर यह चलेगा कितने दिन ?" दुकानदार - "जिंदगी तक चलेगा।"
ग्राहक कलम लेकर घर गया । संयोग की बात कि लिखते लिखते कलम उसी दिन टूट गई । ग्राहक दूसरे दिन टूटी हुई कलम लेकर दुकानदार के पास आया और बोला, "आप तो कहते थे कि यह कलम जिन्दगी भर चलेगी, पर यह तो एक ही दिन मैं टूट गई।"
दुकानदार- "मैंने यह तो नहीं कहा था कि आप जीवित रहोगे तब तक यह पेन चलेगी। अरे भाई ! पेन का आयुष्य था, तब तक वह चली।
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