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पुरुषार्थ चतुष्टय
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उनको पुरुषार्थ की पादत होने लगी। एक दिन घर के एक सदस्य को कुछ नहीं मिला, एक मरा हुआ सपं मिल गया तो वह उसे ही उठा लाया। नववधु ने उस मरे हए सर्प को घर की छत पर डाल दिया। संयोग की बात की एक चील कहीं से एक सोने का हार उठा लाई थी, वह उड़ती हुई उधर से ही निकली। चील ने जब छत पर साँप देखा तो उसने अपने स्वभावानुसार झपट्टा लगाया। साँप को लेकर उड़ गई । घर के सदस्यों ने जब मरे हुए सर्प के स्थान पर सोने का हार देखा तो बहुत प्रसन्न हुए। भाग्य ने उनके निकम्मे पुरुषार्थ को भी सफल कर दिया था।
आयुर्वेद का अभिमत है कि शरीर में दो कमल होते हैं - हृदयकमल और नाभिकमल । सूर्यास्त हो जाने पर ये दोनों कमल संकुचित हो जाते हैं। अतः रात्रि-भोजन निषिद्ध है। इस निषेध का दूसरा कारण यह भी है कि रात्रि में छोटे-छोटे जीव भी खाने में आ जाते हैं । (प्रकाश होने पर अन्य जीव भी भोजन में गिर जाते हैं। ) इसलिए रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिये ।
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