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पुरुषार्थं चतुष्टय
आनन्द बनाये रखना और (५) पराक्रम : चाहे जैसी मुसीबत में भी डटे रह कर धैर्यपूर्वक खड़ा रहना ।
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प्रथम सोपान उत्थान का एक उदाहरण: एक चोर चोरी करने गया । कुछ लोगों ने चोर को देख लिया और वे उसके पीछे पड़ गये । चोर भागता हुआ एक देवी के मन्दिर में जा घुसा श्रौर मूर्ति के सामने गद्गद होकर कहने लगा, "माँ मेरी रक्षा करो।" देवी ने कहा, "घबरात्री नहीं मैं तुम्हारी रक्षा करूंगी, पर एक काम तुमको करना होगा, तुम्हारा पीछा करने वाले लोग जब यहाँ प्रावें तब तुम जोर से हुँकार करना । "
चोर बोला, “माँ ! मैं हुँकार कैसे करूंगा, डर के मारे मेरा तो गला बैठ गया है ।
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देवी ने कहा, "अच्छा, तुम उन्हें प्राँखें ही दिखा देना : "
चोर - "आँखें कैसे दिखाऊँगा, भय से मेरी तो आँखें ही बंद हो रही है ।"
देवी- "तो तुम उठकर दरवाजा तो बन्द कर दो ।"
चोर- 'मेरे पाँव भय से काँप रहे हैं, दरवाजे तक कैसे जाऊँ ? "
देवी - "ठीक है, कुछ नहीं कर सकते तो तुम मेरी मूर्ति के पीछे ही छिप जाओ ।"
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चोर" भय से मेरा तो हिलना डुलना ही बन्द हो गया है । देवी - "तुम पुरुषार्थहीन हो, कायर हो, निकम्मे हो, ऐसे व्यक्ति की मैं रक्षा नहीं करती ।"
दूसरे सोपान कर्म का एक उदाहरण एक निर्धन परिवार था । भरापूरा परिवार था, किंतु घर के सभी सदस्य उद्यमहीन थे, दिन भर घर में पड़े रहते थे। घर में नववधु आई तो उसने देखा कि घर के सभी लोग पुरुषार्थ हीन हैं. तब घर का खर्च कैसे चलेगा ? नववधु ने सारे परिवार के सदस्यों को एक शिक्षा दी "कि आप में से कोई भी जब घर से बाहर जाये, तब बाहर से कुछ न कुछ लेकर आये, खाली हाथ कोई भी न लौटे। नियमानुसार सभी लोग जब बाहर जाकर घर लौटते तो मुट्ठीभर मिट्टी, पत्थर, फटे पुराने कपड़े या अखबार के कागज कुछ न कुछ लेकर आते । ऐसा करते
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