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पुरुषार्थ चतुष्टय
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के अतिरिक्त कोई पुरुष यहां नहीं पा सकता । राजा ने कहा कि मेरी रानियें पतिव्रता हैं। कमल ने कहा कि इसकी परीक्षा होनी चाहिये। रानियों की परीक्षा के लिये नगर में ढिंढोरा पिटवाया गया। कमल ने स्वयं ढोल पकड़ कर ढिढोरा पीटा । एक बड़ी खाई खुदवाई गई जिसे पांव द्वारा लांघा जा सके । सभी रानियों को खाई लांघने के लिये कहा गया । १०१ रानियें खाई लांघ गयी। उसमें ७५ रानियें थीं। सात वेषधारी स्त्री थी । यह पुरुष है या स्त्री इसकी परीक्षा कैसे हुई ? खाई लांघते समय स्त्रियें पहले बाँया पाँव उठायेगी और पुरुष दायां पांव पहले उठायेंगें। इसी से स्त्री पुरुष की परीक्षा होती है । राजा कमल की इस परीक्षा विधि से बहुत प्रसन्न हुया और उसे बहुत इनाम देकर विदा किया।
भोजन की थाली परोसी हुई आपके सामने रखी है, किंतु यदि प्राप हाथ न चलायें तो भोजन मुह में कैसे जायेगा ? यदि किसी ने मुह में कौर दे भी दिया तो भी दाँतों को चबाना पड़ेगा ही। अतः उद्यम पिता है और भाग्य उसका पुत्र ।
दही में मक्खन तो है, यदि आप वर्षों तक उसे प्रणाम करते रहें, प्रार्थना करते रहें कि हे दहो देवता ! कुछ मक्खन दो, तो क्या आपको मक्खन मिल जायेगा ? समुद्र के पास रत्नों का भंडार हैं, किंतु क्या प्रार्थना करने पर वह पापको रत्न निकाल कर दे देगा? उसके लिये आपको उद्यम करना पड़ेगा । दही को बिलौना पड़ेगा, तभी मक्खन मिलेगा । समुद्र में गोता लगाकर रत्न ढढने पड़ेंगे तभी रत्न मिलेंगे।
एक विचारक ने ठीक ही कहा है कि भक्ति के पास हृदय है, ज्ञान के पास आँखें हैं और पुरुषार्थ के पास पांव हैं। हृदय से हम किसी भी वस्तु पर विश्वास कर सकते हैं। प्रांखों के द्वारा हम मार्ग देख सकते हैं। परन्तु चलने का काम तो पाँव ही करेंगे । मंजिल की दूरी विश्वास से कम नहीं हो सकती। देखने मात्र से मंजिल आपके पास नहीं पा जायेगी। पाँव ही आपको उस मंजिल तक पहुँचा सकते हैं । अतः भक्ति में तन्मयता है, ज्ञान में प्रकाश है किन्तु चैतन्यता तो पुरुषार्थ में ही है । पुरुषार्थ के पाँच पाये हैं:- (१) उत्थान : आलस्य का त्याग कर खड़े हो जाना, (२) कर्म : काम में संलग्न हो जाना, (३) बल : स्वीकृत कार्य में मन, वचन, काय योग का उपयोग करनो, (४) वीर्य : स्वीकृत कार्य को संपूर्ण करने का उत्साह
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