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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८८ www.kobatirth.org } पुरुषार्थ चतुष्टय हमारे समस्त कार्य संचालित होते हैं । धर्म वस्तुतः भारतीय जीवन पद्धति का ही दूसरा नाम है । परन्तु अर्थ और काम का महत्त्व भी धर्म से कम नहीं है । काम पुरुषार्थ के लिये अर्थ पुरुषार्थ साधन है। इसी प्रकार मोक्ष पुरुषार्थ के लिये धर्मं पुरुषार्थं साधन है । वैसे आध्यात्मिक दृष्टि से काम और अर्थ पुरुषार्थ त्याज्य हैं और धर्म तथा मोक्ष पुरुषार्थ ग्रहणीय हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चाहे हम किसी भी गति या किसी भी योनि में क्यों न हों, वहाँ हमने एक क्षरण भी ऐसा नहीं बिताया होगा, जहाँ, उपयुक्त चारों में से किसी एक पुरुषार्थ को न किया हो । यह पुरुषार्थं सत् हो या असत् यह दूसरी बात है, पर पुरुषार्थ तो है ही । एक बड़े बंगले में एक नौकर कचरा साफ कर एक स्थान पर एकत्रित कर रहा था । सेठ का एक बच्चा उसी कचरे में से मुठ्ठी भर भर कर इधर उधर बिखेर रहा था । नौकर और बच्चा दोनों ही अपनी अपनी समझ से पुरुषार्थ कर रहे थे, किन्तु नौकर का पुरुषार्थ सत् और बच्चे का पुरुषार्थ असत् था । किसी पदार्थ का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त किया जाता है इसके ११ उपाय बताये गये हैं, इनमें से प्रथम उपाय उद्यम है । कर्म को ही सब कुछ मानने वाले लोग कहेंगे कि राजा तो हमेशा बैठा ही रहता है, मात्र ग्रीज्ञा देता है तथा उसकी प्राज्ञा का पालन करते हुए उसके सेवक, नौकर चाकर उसका सब काम कर देते हैं । इसी प्रकार हम भी भाग्य के भरोसे बैठ जायें तो हमें भी उद्यम नहीं करना पड़े । भाग्य में जो होगा वह तो मिल ही जायेगा। किंतु यह धारणा गलत है, पुरुषार्थ के बिना मात्र भरोसे कोई काम नहीं हो सकता । भाग्य के एक सेठ जंगल में गया, वहाँ उसे एक खोपड़ी मिली जिसमें लिखा था कि इस व्यक्ति ने १०० की हत्या की है और १०१ का वध करने वाला है । सेठ खोपड़ी को उठाकर घर लाया और उसका पूजन करने लगा । सेठानी को संदेह हो गया कि यह खोपड़ी मेरी सौत की है। उसने खोपड़ी को चूल्हे में जलाकर राख कर दिया और राख को दूध में घोलकर पी गई। कुछ दिन बाद सेठानी गर्भवती हुई। उसे कमल जैसा सुन्दर पुत्र हुआ । उसका नाम भी कमल रखा गया । बड़ा होकर वह व्यापार करने परदेश गया । उस देश के राजा को कमल ने बड़ा मच्छ भेंट किया । राजा ने मच्छ को रनिवास में भेज दिया । रानी ने उसे यह कह कर वापस भेज दिया कि मच्छ पुरुष है और रनिवास में कोई पुरुष नहीं आ सकता । राजा For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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