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पुरुषार्थ चतुष्टय दर्शन शास्त्र के जगत् में तीन दर्शन मुख्य माने गये हैं-(१) यूनानी दर्शन, (२) पश्चिमी दर्शन और (३) भारतीय दर्शन । यूनानी दर्शन का महान् चितक अरिस्टोटल (अरस्तू) माना जाता है। उसका अभिमत है कि दर्शन का जन्म आश्चर्य से हुआ है । (फिलासफी बिगिन्स विथ वन्डर). इसी कथन को प्लेटो ने भी स्वीकार किया है ।
पश्चिम के प्रमुख दार्शनिक डेकार्ट, काण्ट, हेगल आदि ने दर्शन शास्त्र का उद्भावक तत्त्व संशय माना है । (दर्शन का प्रयोजन पृ. २६ S/o भगवानदास) भारतीय दर्शन का जन्म जिज्ञासा से हुआ है। जिज्ञासा से मूल दुःख में रहा हुआ है। जन्म, जरा, मरण प्राधि, व्याधि, उपाधि से युक्त होकर समाधि प्राप्त करने के लिये जिज्ञासाएं जागृत हुई। अन्य दर्शनों की भाँति भारतीय दर्शन का ध्येय ज्ञान प्राप्त करना मात्र न होकर परम सुख मोक्ष को प्राप्त करने में भी है। भारतीय दर्शन केवल विचार प्रणाली नहीं, किंतु जीवन प्रणाली भी है। वह जीवन और जगत् के प्रति एक विशिष्ट दृष्टि प्रदान करता है । मोक्ष भारतीय दर्शन का केन्द्र बिन्दु है । पुरुषार्थ चतुष्टय में मोक्ष को प्रमुख स्थान दिया गया है । धर्म साधन है तो मोक्ष साध्य है । मोक्ष को केन्द्र बिन्दु मानकर हा भारतीय दर्शन फले फूले हैं । कहा भी है--
'चतुर्वऽग्रणीमोक्षो योगस्तस्य च कारणम् । ज्ञान श्रद्धान चारित्र रूप रत्नत्रयं च सः ॥ १-१५
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थो में मोक्ष मुख्य है। उसका कारण योग है । वह योग ज्ञान, दर्शन (श्रद्धा) और चारित्र के रूप में रत्नत्रयी है। कुछ लोगों का विचार है कि भारतीय संस्कृति पूर्णतः धार्मिक और प्राध्यात्मिक है । भौतिक जीवन का इसमें कोई महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं है। किन्तु ऐसी बात नहीं है । यहाँ धार्मिकता और आध्यात्मिकता के साथ ही साथ भौतिकता का भी समान महत्व समझा गया है। हमारे जीवन के श्रेष्ठ और प्रादर्श चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं । इनमें से अर्थ और काम पुरुषार्थ भौतिकता के ही प्रमाण हैं । धर्म पर ही
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