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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चारित्र योग जितनी अविरति (व्रत-प्रत्याख्यान) उतना ही पंडित वीर्य और जितनी अविरति उतना ही बाल वीर्य । चारित्र पाँच प्रकार का होता है:- १ सामायिक २. छेदोपस्थानीय ३ परिहार विशृद्धि ४. सूक्ष्म संपराय और ५. यथाख्यात चारित्र । सामायिक और छेदोपस्थानीय छठे से नौवें गुणस्थानक में होता है। परिहार विशुद्धि छठे और ७ वें गुरणस्थानक में होता है । सूक्ष्म संपराय १० वें गुरणस्थानक में होता है । यथाख्यात चारित्र ११ वें से १४ वें गुरगस्थानक में होता है । इन पाँचों चारित्रों की पारावना करने वाले पाँच प्रकार के साघु होते हैं:- १. पुलोक २. बकुल ३. कुशील ४. निग्रंथ और ५. स्नातक। दर्शन (श्रद्धा) रहित ज्ञान व्यर्थ है और क्रिया रहित ज्ञान भी व्यर्थ है। इसीलिये तो शास्त्र कहता है:--- 'ज्ञानदर्शनक्रियाभ्यां मोक्षः ।' ज्ञान, दर्शन और क्रिया की त्रिवेणी से ही मोक्ष मिल सकता है । शाश्वत सुख प्राप्त करने का अहिंसा के पूर्ण पालन को छोड़कर अन्य साधन हो ही नहीं सकता। इसी वजह से वीतराग सर्वज्ञा भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट आगमों का प्रधान विषय अहिंसा For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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