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( राग : शत्रुजय मंडन...) अजवाळी बीजे चंदा तुं अवधार, विनतडी मारी जाय विदेह मोझार; प्रणमु सीमन्धर मुज दुरित करजोड; नमतां प्रभुजी नित पहोंचे वंछित कोड. १ उत्कृष्टे काळे सित्तेरसो जगनाथ, उपजे महीमंडल मुगतिपुरीनो साथ; तिहां केवलज्ञान केवळदर्शन अनंत, सगरो भवि भावे जिम पामे भवअंत. २ अढी द्वोपमांहे पंच विदेह प्रधान, विचरे तिहां प्रतिदिन विश विहरमान,
अतिशे गुणवंता दे भवियण उपदेश, तस चाणी सुगता सांसो नहि लवलेश. ३ शासनहितकारी समकित दृष्टिदेव, ते सानिध्य कीजे श्री संघनित प्रतिमेव; श्री विजयगच्छनायक सागरज्ञानमूरिंद, पदपंकज प्रणमु अनिशि वीरजिणंद. ४
(८) ( राग : शत्रुजय मंडन ऋषभजिणंद दयाल ) श्रोजिन सीमन्धर धुर नाम निवास, प्रणमुं त्रिगडे सोहे मोहे लीलविलास; सेवकजन केरी वंछिन पूरई आश, सवि संपत्ति मेलई जेहतणा गुणराश. १
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