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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५) (राग : चौपाई छंद) उजियाली बीज सुहावई रे शशीरूप अनुप विभावई रे, चंदा विनति चित्तमां घरजो रे, सीमन्धरसे वंदन करजो रे, १ बीश विहरमान जिनवादी रे, जिन शाश्वत पूजी आनंदी रे, तिहां नाम अमारुं लेजो रे, चंदा ए हितकामित देजो रे, सीमन्धरजिन वाणी रे, चंदा सुणतां अभीय ते निसुणो अमने सुणात्रो रे, भत्र संचित पाप श्री सोमन्धर जिन सेवी रे, चंदा भासन शामनदेवी रे: ते होजो संघनई त्राता रे, गजागंद आनंद विख्याता रे, ४ समाणी रे, गमावो रे, ३ (६) अजुवाळी ते बीज सोहावे रे, चंदारूप अनुपम भावे रे, चंदा विनाडी चित्त धरजो रे, सोमन्धरने वंदना कहेजो रे. १ वीश विहरमाण जिनने बंदा रे, जिनशासन पूजी आणंदो रे, चंदा एटलु काम मुज करजो रे, श्री सीमन्धरने वंदगा कहजो रे, २ श्री सीमन्धर जिननी वाणी रे, ते तो पीतां अमीय समाणी रे, चंदा तुमे सुगी अमने सुगावो रे, भत्र संचित पाप गमात्र रे. ३ For Private And Personal Use Only श्री सीमन्धरजिननी सेवा रे, जिनशासन भासन मेवा रे, तुमे होजो संघना त्राता रे, जगत चंद्र विख्याता रे. ४
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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